Friday, April 8, 2011

ज़िन्दगी की कहानी

कहानी...अपनी दादी- नानी से बचपन में सुनी है,हम सबने...राजा-रानी की,अच्छे- बुरे लोगों की, सच्चाई की जीत की,मेहनत के फल की.....बचपन से ही इन कहानियों का असर हमारे दिलोदिमाग में होने लगता है और इन कहानियों के साथ ही शुरू होता है...हमारी कहानी का सफ़र...हाँ, सोचकर देखो क्या हम सबकी ज़िन्दगी में एक कहानी नहीं है..कभी अच्छे लोग मिलते हैं...तो कभी बुरे...जैसे कहानी के कैरेक्टर...कभी हम परेशानी में फंस जाते हैं और कोई मदद नहीं मिलती तो हम बिलकुल वैसे ही परेशान हो जाते हैं जैसे कहानी में परी के पंख बंध जाने के बाद वो हो जाती है...

बस बचपन में कहानी ख़त्म होते-होते हमारी आँखें नींद से बोझिल होकर बंद हो जाया करती थी...लेकिन ज़िन्दगी की कहानी हमारी आँखों के बंद होने के बाद ही ख़त्म होगी..

ये ज़िन्दगी की कहानी बचपन में सुनी कहानियों से भी कठिन होगी...सोचा ना था....

Monday, April 4, 2011

एक नई सुबह

सूरज की पहली किरण और पंछियों के शोर से ये आभास हुआ कि सबेरा हो गया...वैसे खिड़की से छनकर आती किरणें सीधे मेरे मुँह पर पड़ रही थीं..लेकिन मुझे कोई परेशानी नहीं हो रही थी..बल्कि ये मुझे एक सुकून दे रहीं थीं..ऐसा लग रहा था मानो ये किरणें थककर निढाल हो चुके मेरे शरीर को अपनी ऊष्मा से ऊर्जा दे रही हो...सुबह इतनी कोमल लगने वाली किरणें दोपहर में कैसा भीषण रूप धर लेती है...जैसे बचपन में कोमल मन वाले हम बड़े होते-होते कठोर हो जाते हैं... लेकिन शाम को यही किरणें अपनी सुबह की चंचलता और दोपहर की कठोरता को छोड़ बिलकुल नया रूप धर लेती है...शांत लगती है..जैसे कोई योगी त़प में मग्न हो और उसे मोक्ष मिलने वाला हो..कितना अनोखा और सुखद है ये विचार॥

यही सब सोचते हुए जब घडी पर नज़र पड़ी तो ८ बजा देख मैं उछल कर ज़मीन पर आई और जल्दी से नहाकर नाश्ता करके काम पर जाने की तैयारी करने लगी...इस भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में ऐसे खुशनुमा विचारों के लिए भी जगह नहीं रह गई है....

ज़िन्दगी की दौड़ भाग में सुबह की खूबसूरती को निहारने का मौका भी न मिलेगा...सोचा ना था....