Friday, May 29, 2009

रेमेसिस-द्वितीय:मिस्र का एक महान फेराह

मिस्र के बारे में जब भी बात हो तो......फ़राह और पिरामिड की बातें भी होती ही हैं.फेराहों में एक नाम हमेशा याद किया जाता है.....रेमेसिस-द्वितीय का,जिसने सभी फेराहों से ज्यादा निर्माण कार्य करवाया.....और एक नई मूर्ति प्रथा की शुरुवात भी की.रेमेसिस द्वितीय का जन्म १३०३ में हुआ,उसने अपने पिता के नेतृत्व में फेराह बनने का सफर शुरू किया....वह राज काज देखता था......योद्धाओं से मिलता था...उनका नेतृत्व करता था,उसकी उम्र तब केवल १४ साल थी.इस समय में मिस्र में कई बदलाव भी आए,जैसे.........मंदिरों का निर्माण ज्यादा होने लगा था,इसके द्वारा न सिर्फ़ देवतों को प्रसन्न करने की कोशिश की जाती थी बल्कि लोगों को भी खुश रखा जाता था.....इसके साथ ही मंदिरों में कला का भी विकास हो रहा था...रंगीन चित्र बनने शुरू हो गए थे.इस बीच नील नदी के सुखने से आर्थिक तंगी का सामना तो कुछ समय के लिए ही करना पड़ा लेकिन बाहरी हमलावरों के द्वारा मिस्र के एक बड़े हिस्से पर कब्जा भी कर लिया गया.....जिसे बाद में मिस्रवासियों के आपसी सहयोग से हासिल कर लिया गया,लेकिन मिस्र के राजाओं का देवताओं की तरह किया जाने वाला सम्मान जरूर खो गया.

सेती की मृत्यु के बाद रेमेसिस द्वितीय राजा(फेराहो) बना ...इस समय वो २० साल का था.....फेराहो बनते ही रेमेसिस ने युद्ध के द्वारा मिस्र का विस्तार कर लिया और 4 साल में ही उसने काफ़ी संपत्ति बढ़ा ली.....वो एक अच्छा राजा कहलाया.रेमेसिस का एक ही लक्ष्य था.....केडास(सीरिया) पर विजय,जो की उससे पहले ४ फेराहो नही कर पाये थे.रेमेसिस ने इसके लिए रथ और हड्डी से बने हथियार साथ लिए लेकिन वो केडास के राजा के जाल में फंस गया.उसे जंगल में केडास के दो व्यक्ति मिले;जिन्हें सेना द्वारा बंदी बनाया गया था.....उन्होंने इसे केडास कि सेना के शहर से १२० कि.मी.दूर होने की ग़लत सुचना दी जिसके कारण रेमेसिस ने अपनी सेना को टुकडियों में बाँट दिया...शहर पहुँचते ही वह बुरी तरह फंस गया,विरोधी सेना के पास लोहे के हथियार थे....जब रेमेसिस हार रहा था तभी उसकी दूसरी सेना टुकडी आ गई,युद्ध फ़िर से शुरू हो गया लेकिन दिन की समाप्ति तक कोई नतीजा नही निकला।


दुसरे दिन युद्ध से पहले रेमेसिस के सामने समझौते कि बात कि गई,वो इसके लिए तैयार नही था..उसे डर था की वो वापस जाकर मिस्रवासियों को क्या जवाब देगा.....रेमेसिस ने वापस आ कर अपने अधूरे समझौते की बात जाहिर नही की.उसने शर्म से बचने के लिए मंदिरों पर चित्र खुदवाए....जिसमे उसे अकेले ही केडास कि पूरी सेना से भिड़ते हुए दिखाया गया।मिस्र में अब पिरामिडों का चलन बंद हो गया...ख़ुद को पत्थरों में बनवा लेना ही अमरता कि निशानी बन गया था...रेमेसिस ने भी पहाड़ को तराश कर अपने स्मारक का निर्माण करवाया,जो उसके शासन के २४ साल बाद बन कर तैयार हुआ.ये बहुत ही शानदार मन्दिर है और अब्बू सिब्बल के नाम से जाना जाता है.....वैसे तो रेमेसिस ने बहुत से मंदिरों और स्मारकों का निर्माण करवाया था,लेकिन अब्बू सिब्बल बहुत ही प्रसिद्ध है...इसके भीतरी हिस्से में उसकी ३०-३० फीट लम्बी प्रतिमा है....मन्दिर के गर्भगृह में भी उसकी प्रतिमा २ भगवान् कि मूर्तियों के साथ मौजूद है...सूर्य कि किरणें साल में २ बार ही वहाँ पहुँचती है।

रेमेसिस के विशाल निर्माण कार्य का प्रमाण उसकी प्रतिमाओं कि अधिकता है.उसने सबसे ज्यादा प्रचार भी किया....युद्घ के तुंरत बाद वो प्रचार के लिए मंदिरों में नक्काशियां करवाता था.रेमेसिस के सभी पत्नियों से ४० बेटे-४० बेटियाँ थीं.उसने तीन पीढियों तक राज किया(करीब ६७ साल)....वह ९०-९१ साल की उम्र तक जीवित रहा.उसकी मृत्यु के कुछ समय बाद उसकी ममी एक साधारण से मकबरे में पाई गई,जहाँ मकबरे से कीमती चीजों को चुराने के बाद ममी को रख दिया जाता था.

मिस्र के इन स्मारकों और रेमेसिस के बारे में जानकर मिस्र के इतिहास की जटिलता को समझने का मौका मिला,इसे ज्यों का त्यों आपके सामने रख पाऊंगी......सोचा था....

Wednesday, May 20, 2009

गिजा का पिरामिड

खुफु...2600B.C.में मिश्र का एक महान शासक,जो की अपने लोगों के बीच भगवान की तरह पूजा जाता था.उसका अपनी जनता पर न सिर्फ़ पूरा नियंत्रण था बल्कि लोग उसपर भरोसा भी करते थे.....खुफु बीस साल से भी ज्यादा समय तक दुनिया का सबसे शक्तिशाली इंसान बना रहा,उसने अपने देश की समृद्धि के लिए कई कार्य किए.इसमे से ही एक कार्य था....गिजा के पिरामिड का निर्माण।

खुफु से पहले उसके पिता"स्नेफेरू"ने भी तीन पिरामिडों का निर्माण कराया था.....सीढीनुमा पिरामिड,सपाट पिरामिड;लेकिन इनमें कुछ त्रुटियाँ थीं जैसे कमजोर नीव,जिसके कारण ये बाद में तिरछे हो गए थे.खुफु इन गलतियों सुधारते हुए इनसे भी अच्छा पिरामिड बनाना चाहता था.....इसलिए उसने गिजा के पठार को चुना....यहाँ की पथरीली ज़मीन मजबूत बुनियाद और उत्तम गुणवत्ता वाले लाइम स्टोन की उपलब्धता के कारण चुनी गई।

इस पिरामिड निर्माण में बहुत पैसा लगने वाला था मिश्र नील नदी के द्वारा समृद्ध था,लेकिन ये तब भी संभव नही था.ये भी कहा जाता है कि इसलिए खुफु ने इसे गुलामों से बनवाया...लेकिन विभिन्न खोजों के द्वारा पता चल चुका है कि निर्माण कार्य मिस्रवासियों के द्वारा ही हुआ था.

इसके लिए खुफु ने नील नदी कि बाढ़ का उपयोग किया.बाढ़ के 3-4 महीनों में जब किसानों के पास रोजगार नही होता था,तब उन्हें निर्माणकार्य में लगा कर रोजगार प्रदान किया जाता था.इस निर्माण कार्य में करीब 1,00,000
व्यक्ति कार्य में लगे थे.पिरामिड से कुछ मील दूर शहर बसाया गया था,ताकि मजदूर निर्माण कार्य पूरा करने तक वहाँ रह सकें.....यहाँ उन्हें अस्पताल,स्कूल,जैसी सुविधाओं के साथ -साथ राजा द्वारा भोजन और महिलाओं के लिए रोजगार भी उपलब्ध कराया गया था.राजा जो ख़ुद खाते थे वही उन्हें देते थे.


इस
पिरामिड को माट(सूर्य के देवता जिनके कारण सूर्य उदय और अस्त होता है,ऐसी मान्यता है)के नियमानुसार बनाया गया.उन्हें पूर्व और पश्चिमी दिवार पर बनाया जाता था और ध्रुव तारे से भी सम्बन्ध जोड़कर निर्माणकार्य किया गया.स्क्वायर लेवल के द्वारा पत्थरों को समतल रखा गया.पिरामिड को लाइम स्टोन से ढंककर प्लेन किया गया,जो कि सूर्य कि किरणें पड़ने से चांदी की तरह दिखती थी.निर्माण कार्य के लिए नील नदी के द्वारा ही सामान उपलब्ध कराया जाता था.भारी पत्थरों को निर्माण स्थल तक पहुँचने के लिए रैंप और लकडी के प्रयोग किया जाता था.इन बातों की पुष्टि मजदूरों के कंकालों की जांच से पता चलीं हैं,क्यूंकि उनके कंकाल में हड्डियां मुडी हुई और कमर झुकी हुई पाई गई,साथ ही मजदूरों और उनके परिवार की औसत आयु २२ वर्ष थी जबकि राजपरिवार की औसत आयु ५५ वर्ष।

खुफु की इच्छा थी,कि पिरामिड का निर्माण उसकी मृत्यु से पहले ही हो जाए...पिरामिड बनने में 20साल लगे,उसकी ऊंचाई तब 146.6 मी.थी,जो की तब तक बने पिरामिडों में सबसे ज्यादा थी.....पिरामिड निर्माण के कुछ दिनों के बाद खुफु की मृत्यु हो गई.खुफु के बाद भी कई पिरामिड बनाये गए,लेकिन फिर भी उसके द्वारा बनवाया गया गिजा का पिरामिड ,जिसे SUPHIS भी कहा जाता है और जिसकी ऊंचाई अब 137 मी.है,अब भी खुफु की कहानी बयान करता है।

विश्व के सात अजूबों में से एक मिश्र के पिरामिडों के निर्माण की कहानी इतनी रोचक होगी...सोचा ना था....

Monday, May 18, 2009

ज्ञान की संकरी गलियों में लेखक से साक्षात्कार

कल शाम "लैंडमार्क"गई,वहाँ 'जेफ्फ्री आर्चर' आने वाले थे.......शायद आप में से कई लोग जानते ही होंगे कि,इनकी बुक यु के बेस्ट सेलर चार्ट में दो महीनो तक नंबर वन पोजीशन में रही.वैसे भैया और मैं जल्दी पहुँच गए थे.....लेकिन वहाँ कि सभी कुर्सियां भर गई थीं.....कुछ लोग बैठे थे और साथ कि कुर्सियों को अपने पहचानवालों/रिश्तेदारों के लिए रोक रखे थे......कहीं भी देखो कुर्सी तो कोई भी खाली नही छोड़ना चाहता.खैर हमने सोचा कि जब आज तक हम यहाँ कभी बैठे ही नही,तो आज क्यूँ कुर्सी कि लड़ाई में पड़े?सो हम रोज कि तरह घूम कर किताबें देखने लगे......क्यूंकि आज लोगों के बैठने के लिए जगह बनानी थी,इसलिए बूक्सेल्फ़ को आपस में सटाकर रख दिया गया था,जिनके बीच से गुजरते हुए भैया ने कहा,"ज्ञान की संकरी गलियों से गुजर रहे हैं".

जेफ्फ्री जी का इंतजार हमने बुक पढ़कर किया.मैंने आज यहाँ 'तरकश' पढ़ी.इसमें जावेद अख्तर जी ने अपने शब्दों में अपने संघर्ष को बखूबी बयान किया है,वैसे मैं इसे पूरा तो नही पढ़ पायी,क्यूंकि जेफ्फ्रीजी आ गए....कुछ देर उन्होंने अपनी कहानियों के बारे में चर्चा की,अपने संघर्ष के बारे में भी बताया,लोगों के प्रश्नों का जवाब दिया और बाद में सबके लिए बुक में साइन भी किया।

आज तक मैंने कई किताबें पढ़ी हैं,लेकिन पहली बार किसी लेखक से मिलने का मौका मिला,बातें ज्यादा गंभीर तो नहीं थी......पर ज्ञानवर्धक थीं.वैसे आप कहीं भी कोई भी बात सुनें या पढ़ें वो कभी न कभी तो काम आती ही हैं।किसी लेखक से मिलने के लिए यूँ ज्ञान की संकरी गलियों में घूमना,इतना अच्छा लगेगा......सोचा था....

Saturday, May 16, 2009

युगंधर:रुक्मिणी की नज़र से

युगंधर में श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के विवाह के बाद की घटनाओं को रुक्मिणी के माध्यम से बताया है.जिस तरह से एक पत्नी को हमेशा अपने पति पर नाज़ होता है और अगर वो अपने पति के बारे में बात करे तो वह उनकी हर उपलब्धि से प्रभावित रहती है....इसी तरह से रुक्मिणी के भावों को प्रकट किया गया है.लेकिन उन्होंने कई ऐसी घटनाओं का भी जिक्र किया जो उनके सामने नही घटी.....इस बात से पाठकों को हैरानी न हो इसलिए रुक्मिणी ने बताया है की ये बातें उन्हें उद्धवजी से पता चली,जो श्रीकृष्ण के साथ हमेशा रहते थे.

इस भाग में रुक्मिणी के द्वारा 'शिवाजी' ने उनकी द्वारिका आने,प्रदुमन् के जन्म और अपहरण,सम्यन्तक मणि की चोरी,श्रीकृष्ण के अन्य विवाह और रुक्मिणी का श्रीकृष्ण की अन्य पत्नियों का प्रेमपूर्वक स्वागत,श्रीकृष्ण के वंश,द्रौपदी स्वयंवर,स्वयंवर में पांडवों को जीवित पाने पर श्रीकृष्ण की खुशी,श्रीकृष्ण का हस्तिनापुर जाकर पांडवों को न्याय दिलाने की कोशिश,खांडववन को इन्द्रप्रस्थ बनने की घटना,अर्जुन का द्वारिका आगमन,सुभद्रा का अर्जुन से लगाव,श्रीकृष्ण और उनके परिवार का इन्द्रप्रस्थ जाना,भीम का बलराम से मल्ल विद्या की शिक्षा लेना,अर्जुन का वनवास,बलराम का सुभद्रा का विवाह दुर्योधन से तय करना,श्रीकृष्ण द्वारा सुभद्रा को अर्जुन से हरण करवाना.....इन सभी घटनाओ का जिक्र करवाया है.

इसके अलावा और भी कई रोचक घटनाओं का भी जिक्र किया गया है,जैसे सुदामा का द्वारिका आगमन और श्रीकृष्ण का उनका स्वागत करना,लक्ष्मणा के स्वयंवर में श्रीकृष्ण का मुकुट में से मोरपंख उतारना.....जिसने सभी को आश्चर्य में डाल दिया,रुक्मिणी को भी....इसका कारण केवल उद्धवजी को पता था......

"स्वयंवर-मंडप में कोई भी समझ नही सका कि उस मोरपंख के कारण भैया जलकुंड में प्रतिबिंबित,गरगर घूमते मत्स्य के नेत्र को भेद नही पा रहे थे.जलकुंड में दोलायमान मत्स्य-बिम्ब के साथ-साथ चंद्रभागा को छूकर आती शीतल वायुलहरों के कारण भैया के मुकुट में लगे मोरपंख का जलकुंड में पड़ा प्रतिबिम्ब भी दोलित होकर मत्स्यभेद में बाधा डाल रहा था.वह भैया की एकाग्रता भंग कर रहा था.अतः भैया ने इसे उतारकर रखा."

श्रीकृष्ण की पत्नी के तौर पर रुक्मिणी की ओर से श्रीकृष्ण की जीवन की घटनाओं को इतनी सहजता से पेश करने की कला भी किसी लेखक में होगी......सोचा था....

Thursday, May 14, 2009

युगंधर

पिछले कुछ दिनों से "युगंधर" पढ़ रही हूँ.पहले तो सोची कि पूरी किताब पढने के बाद ही उसके बारे में लिखूंगी;लेकिन फ़िर मुझे लगा कि क्यूंकि ये एक बहुत ही बेहतरीन किताब है और अगर मैं इसे पूरी पढने के बाद इसके बारे में लिखूंगी.....तो शायद इसके कई अच्छे हिस्सों को इसमे शामिल करने में चूक जाऊं...जो कि मैं नही चाहती,सो मैंने इसके बारे में भाग में लिखने का निर्णय किया.

युगंधर में शिवाजी सावंत ने पहले कुछ पन्नों में श्रीकृष्ण के बारे में लिखने से पहले आने वाली कठिनाइयों के बारे में लिखा है......जिसमे उन्होंने लिखा है,"ऐसा क्यूँ होता है कि श्रीकृष्ण अधिक से अधिक निकट भी लगता है और बात-बात में वह कहीं क्षितिज के उस पार भी जा बैठता है.मन को वह एक अनामिक,अनाकलनीय व्याकुलता क्यूँ दे जाता है?इसे खोजने कि धुन मुझ पर सवार हो गई................................तब पहली ही बात मुझे प्रतीत हुई कि श्रीकृष्ण का हम सबके अन्दर अंशतः वास होते हुए भी हमें उसका आभास नही होता है.इसका कारण है कि पिछले पाँच हजार सालों से वह एक से बढ़कर एक चमत्कारों में अंतर्बाह्य लिप्त हो गया है.अंधश्रद्धाओं के जाल में फंसा हुआ है."

उन्होंने इस उपन्यास को श्रीकृष्ण और उनके जीवन से सम्बंधित व्यक्तियों के माध्यम से प्रस्तुत किया है.श्रीकृष्ण के नाम के साथ ही हमारे मन में एक नाम उभरता है....'राधा'...पहले तो सावंत जी ने अपनी इस कृति में'राधा' को शामिल नही करने की सोची थी.इस विचार को उन्होंने इन पंक्तियों में लिखा है......"राधा का दामन थामकर काव्य क्षेत्र में रसिक कृष्ण ने सदियों तक असमर्थनीय उधम मचाया.वास्तव जीवन में नारी का आदर करनेवाला श्रीकृष्ण काव्यों में स्त्रिलोलुपता की ओर घसीटा गया.बहुत सोचने के बाद मैंने राधा को अपने उपन्यास में स्थान न देने का पक्का निर्णय किया."

लेकिन जब उन्होंने 'राधा' शब्द का अर्थ जाना तो उन्होंने इसे श्रीकृष्ण के द्वारा कहलवाया और राधाकृष्ण के संबंधों को सही रूप में प्रस्तुत किया,इन पंक्तियों के द्वारा..."...'रा' अर्थात प्राप्त होना,'धा' अर्थात मोक्ष....'राधा'अर्थात मोक्षप्राप्ति हेतु व्याकुल जीव......राधा मेरी पहली स्त्री गुरु थी.स्त्रीत्व के सभी रूप और भाव-विभावों कि मुझे दीक्षा देने वाली .....कभी मौन रहकर तो कभी बहुत कुछ मुखर होकर.कभी हलके से स्पर्श से तो कभी भावदर्शी दृष्टीक्षेप से यह दीक्षा दी थी उसने मुझे-वासनारहित अतुलनीय प्रेमयोग की..मेरी प्रिय सखी...पहली स्त्री-गुरु राधिका ही थी."

इसी तरह से कई जगह पर शब्दों से दृश्यों का बहुत ही सुंदर चित्रण मिलता है.गोकुल,वृन्दावन,मथुरा,द्वारिका सभी स्थान का ऐसा चित्रण है कि पढ़कर ही वहाँ के मनमोहक दृश्यों कि कल्पना की जा सकती है...इसी तरह गोपभोज,कृष्णसोपान की रचना,गुरु आश्रम,विभिन्न रत्नों और उपाधियों की प्राप्ति का भी बहुत ही अच्छा वर्णन है.....लेकिन श्रीकृष्ण की अर्जुन और रुक्मणी से भेंट को जिस तरह से दृश्यान्कित किया गया है...उसकी तुलना करना मुश्किल है.

यहाँ मैं अर्जुन और श्रीकृष्ण मिलाप का कुछ अंश लिख रही हूँ उससे ही ये अंदाजा लगाया जा सकता है...."हम एक दूसरे को पहचान गए जन्म-जन्मान्तर के लिए..वह मेरी ही ऊंचाई का था......उसका वर्ण भी मेरे ही जैसा था...हल्का नीला....तप्त लौह-छड़ पर जल छिड़कने से फैलने वाली नीली,जामुनी छटा जैसा...वह मत्स्यनेत्र और बाण के फल की भाँती सीधी नाकवाला था.मेरी ग्रीवा की भाँती ही सुंदर ग्रीवावाला-मेरी ही प्रतिकृति.क्षण भर के लिए मुझे लगा -कहीं मैं स्वयं को दर्पण में तो नही देख रहा हूँ?...अगले ही क्षण उसमें और मुझमें जो सूक्ष्म अन्तर था,वो मेरे ध्यान में आया.मेरे मुह में दाई ओर एक दुहरा दांत था.उसके मुह में ऐसा ही दुहरा दांत बायीं ओर था.मैं मुस्कुराया,वह भी वैसे ही मुस्कुराया."

पूरे उपन्यास में हर पंक्ति.....हर शब्द पाठक को बाँध कर रखने का जादू रखते .....और पाठक ख़ुद भी इस प्यारे बंधन में सहर्ष बंधना चाहताहै. कभी श्रीकृष्ण के जीवन से यूँ जुड़ने का मौका मिलेगा.....सोचा था.....

Thursday, May 7, 2009

अनजाने फायदे

कल ही मैंने ऑटो वालों की हड़ताल के बारे में लिखा था.आज स्थिति कुछ अलग है;वैसे हड़ताल तो ख़त्म नही हुई है;लेकिन इसके कुछ फायदे भी हुए हैं....जैसे की हर परिस्थिति के अच्छे और बुरे दोनों पहलू होते ही हैं.इस हड़ताल की वजह से पुणे शहर में प्रदूषण स्तर में कमी आई है;क्यूंकि हड़ताल की वजह से ६५,००० ऑटो नही चल रहे हैं;साथ ही शहर में ट्रेफिक की स्थिति में भी सुधार हुआ है.पिछले दिनों की अपेक्षा इन हड़ताल के दिनों में चालान की दर में भी कमी आई है;इसका एक कारण है कि आजकल ट्रेफिक नियमों में थोडी रियायत कि गई है,ट्रिपल सीट पर आजकल चालान काटना बंद कर दिया गया है.....पता नही ये सही है या नही?पर इससे लोगों कि परेशानियाँ कम हो रहीं हैं.शहर के युवाओं में भी लोगों कि मदद करने का जूनून देखने को मिल रहा है;यहाँ लिफ्ट पंचायत बनाई गई है,जो लोगों कि सुविधा के लिए स्टेशन के सामने दुपहिया और चार पहिया वाहनों के साथ लिफ्ट देने के लिए मौजूद रहतें हैं.इसके दूसरी ओर कई ऑटो वाले अपने ऑटो चला रहे है;क्यूंकि पिछले पाँच दिनों से उनके ऑटो बेकार खडे थे.....लेकिन उसकी दूसरी ओर ये दुगुना किराया भी वसूल रहे हैं....चाहे जो भी हो किसी हड़ताल के इतने सकारात्मक फायदे भी हो सकते हैं.......सोचा था.....

Wednesday, May 6, 2009

एक रुपए की कीमत

आजकल की आम कहावत है कि,एक रुपए में क्या आता है?या एक रुपए से कुछ फर्क नही पड़ता....वगैरह,वगैरह ....लेकिन आज इसी एक रुपए ने अपनी ताकत और ज़रूरत ज़ाहिर कर दी है.पिछले कुछ दिनों से पुणे में ऑटो के किराए में एक रुपए कि कटौती करने के कारण ऑटोवालों ने हड़ताल कर दी है.ऑटो यूनियन के हेड भूख हड़ताल पर बैठे हैं ,और अप्रत्यक्ष रूप से कई और लोगों को भी न चाहते हुए भूख हड़ताल करने पर मजबूर कर रहे हैं.वैसे ये भूख हड़ताल करने वाले जानते हैं कि नही पता नही;लेकिन इनकी वजह से कई लोग परेशानी का सामना कर रहे हैं.......ये लोग केवल आम जनता ही नही बल्कि अपने यूनियन के ही लोगों को भी परेशान कर रहे हैं ,कई ऐसे ऑटो चालक भी हैं;जो रोज़ की कमाई पर घर चलाते हैं औरआज ये लोग एक रुपए के इस बखेडे की वजह से एक-एक रुपए को मोहताज हो गए हें.इस हड़ताल को ख़त्म करना चाहते हुए भी वे यूनियन के दबाव में इसमें शामिल होने को मजबूर हैं,इस एक रुपए के झगडे में कोई भी नही झुकना चाहता...........न ही ऑटो यूनियन ......न ही बड़े अधिकारी....केवल गरीब ऑटो वाले और आम जनता ही आपस में सुलह करना चाहती है.........कि कभी तुम्हारे पास मेरा एक रुपए............कभी मेरे पास तुम्हारा एक रुपए ......वैसे भी हमेशा से तो ऐसा होता ही आया है.........आज ये बात जब नियम बना दी गई तो ये हड़ताल का कारण बनी......शायद इसलिए क्यूंकि लोग नियमों को तोड़ने और बदलवाने में हमेशा आगे रहना चाहते हैं."हमेशा से अपने बड़ों से सुना था,कि एक रुपए से कोई अमीर-गरीब नही होता",लेकिन कभी एक रुपए के लिए ये सब भी होगा......सोचा था....