Sunday, September 26, 2010

कला की गहराइयों में....

कला....ये शब्द मुझे इन दिनों आकर्षित कर रहा है...आखिर ये कला है क्या...?.....हर छोटे-बड़े काम को करना भी एक कला ही है...लेकिन जब हम इस शब्द की गहराई में जाते हैं,तो पाते हैं कि इस शब्द के साथ साधना और लगन जुड़े हुए हैं...किसी भी कला में माहिर होने के लिए ज़रूरी है...कि आप उसमे पूरी तरह से रम जाएँ...तभी वो कला भी आपमें रम जाएगी...किसी भी तरह की झिझक मन में न रहे...उस कला को अपने शरीर के अंग की तरह महसूस करें...और वो आपमें बिलकुल बस जाएगी।

मैंने अपने जीवन में कई कलाएं सीखीं....कुछ की ट्रेनिंग ली..और कुछ खुद के प्रयासों से....लेकिन जब मैंने "वाएस- ट्रेनिंग" लेनी शुरू की...तब मुझे पता चला कि कोई भी व्यक्ति कलाओं को सीख सकता है...लेकिन कलाओं को अपनाना बहुत कम व्यक्तियों के बस की बात है...किसी भी कला को सीखने से कहीं ज्यादा जरुरी होता है...उन्हें अपनाना। जब कोई व्यक्ति कलाओं को अपनाता है..तब कला भी उसे अपनाती है....और दुनिया देखती है...कला और कलाकार के मिलन से उपजे चमत्कारों को...।

कला का विस्तार एक अथाह समुद्र की तरह है....और कला हर व्यक्ति से यही चाहती है..कि वो उसकी गहराई में गोते लगाये...और वहां मौजूद बेशकीमती खजाने को तलाशें...ये खजाना इतना विशाल है कि ये लाखों-करोड़ों को संतुष्ट करने के बाद भी कभी ख़त्म नहीं होता..बल्कि दिनोंदिन इसमें बढ़ोतरी होती जाती है...कला की गहराई में ग़ोता लगाने वाले हमेशा नवाजे गए हैं....अब मेरा लक्ष्य भी कला की गहराई में गोते लगाकर कुछ मूंगे-मोती तलाशना है....

फिलहाल अपनी स्थिति के बारे में मैं ये कह सकती हूँ कि कला के समुद्र में ग़ोता लगाने के लिए मैं अपने विचारों के स्विमिंग-पूल में तैरने की ट्रेनिंग ले रही हूँ...और मेरी झिझक मुझे जकड़े हुए है..जिससे मेरा मन खुद ही बंदी हो जाता है...और निराशा उसे डुबाने की कोशिश करती है....लेकिन कभी-कभी विचार और मन का ऐसा मिलन होता है....कि मन..विचारों के साथ हो लेता है....

कला को इतनी अच्छी तरह से समझ पाऊँगी....सोचा ना था....