
दरगाह के पास खड़े लोग आपकी श्रद्धा -भावना को चादर पर चढ़े रुपयों के हिसाब से तौलते हैं.....अगर आपको वे एक धागा भी हाँथ में बांधते हैं,तो उससे पहले वो आपसे पैसे मांगते हैं......यही हाल अजमेर के तारागढ़ की मज़ार का था....यहाँ तो अन्दर घुसने से पहले ही दरवाजे पर पैसे चढाने को कहा जाता है........अन्दर जाकर दर्शन करने पर भी पैसे की मांग ज़ारी रहती है.............
ऐसी किसी दरगाह या मज़ार पर जाकर इंसान कुछ पलों के लिए खुद को परमेश्वर के करीब महसूस करना चाहता है.......वो चाहता है कि कुछ पल अपने दुख-दर्द को भुलाकर शांति का अनुभव करे,लेकिन ऐसा करना अब कुछ मुश्किल सा होता जा रहा है.........ऐसे इंसान जिन्होंने शायद अपनी ज़िन्दगी में कभी पैसों को इतना महत्व नहीं दिया होगा और इसी वजह से शायद उन्हें इतना बड़ा ओहदा मिला...उनकी मजारें यहाँ बनी हुई हैं,जिन पर लाखों लोग आकर सजदा करते हैं...लेकिन आज इनकी मजारों को ही व्यवसाय का जरिया बनाया जा रहा है......इन्होने कभी ऐसा.....सोचा ना था....