Sunday, November 14, 2010

दिल तो बच्चा ही सही...

बचपन...कितना अच्छा होता है..और उसकी बेफिक्री क्या होती है...ये बड़े होने के बाद ही पता चलता है...उस वक्त तो बड़े होने की बड़ी जल्दी होती है...लगता है..बड़े होकर ये करेंगे...वो करेंगे...लेकिन बड़े होकर पता चलता है...कि बड़ा होना क्या होता है...और तब बचपन की यादें....क्या ये ही हममें से अधिकांश लोगों की कहानी नहीं है...?

कभी हमने सोचा है..कि चलो भई...छोटे थे तो बड़े होने के बारे में सोचना तो कहीं न कहीं जायज भी था...क्यूंकि तब इतनी समझ कहाँ थी...लेकिन ये बड़े होकर बचपन को याद करना कहाँ तक जायज है...?....मैं ये नहीं कहना चाहती कि बचपन को भूल जाना बेहतर है..बल्कि मैं तो ये कहना चाहती हूँ की क्यूँ न हम अपने बचपन को फिर से जी लें....क्यूँ हम किसी की परवाह करें कि वो क्या सोचेगा हमें ऐसा करते देख....हमने कभी बचपन में तो ऐसा नहीं सोचा....कभी संकोच के लिए तो कोई जगह ही नहीं होती बचपन में...तो आज क्यूँ...?....अपनी कल्पना से हम सपनो को छू लिया करते थे...तो आज उस कल्पना-शक्ति की राह में हम यथार्थ को क्यूँ अपनी टांग अडाने दे है...जब हम बचपन में अपने दिल की सारी बातें यूँ कह दिया करते थे जैसे कोई कंठस्थ कविता सुना रहे हों..तो आज उसी दिल की बातों को कहना...एक अजनबी भाषा की कहानी पढने जितना मुश्किल क्यूँ है...?

लोग कहते हैं...बचपन के दिन वापस नहीं आते...शायद ये बात सही हो...पर मेरा मानना है कि बचपन के दिन न सही...बचपन का दिल ज़रूर वापस आ सकता है...क्यूंकि जब तक आपके दिल बच्चा है...आपकी ज़िन्दगी बचपन की तरह आसान है...क्यूंकि आपका बच्चा दिल आपको सारी परेशानियों और टेन्शन से दूर रखने का कोई न कोई उपाय सोच ही लेगा..... बच्चा बनने के लिए बाल-दिवस से बेहतर दिन तो कोई नहीं हो सकता...।

यूँ बचपन को हमेशा कायम रखने का तरीका पहले कभी....सोचा ना था....

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर पोस्ट
    बिलकुल सही कहा आपने
    बचपन के दिन ही अनमोल और सबसे सुहाने होते हैं

    आभार & शुभ कामनाएं

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