"रश्मि बेटा!बड़ी मौसी के घर भी राखी भेज दी है न...?
"नही माँ!तुम्हे याद नही है...भइया ने मुझे दो सालों से कभी कोई गिफ्ट ही नही भेजी...मैं ही कितने सालों राखी भेजती रहूँ ?...जब उन्हें गिफ्ट देना याद ही नही रहता..."
"रश्मि!ये कैसी बातें कर रही हो तुम...?हम राखी गिफ्ट के लिए नही बांधते...ये तो एक पवित्र बंधन है....गिफ्ट तो केवल शगुन होता है....वास्तव में तो ये एक रक्षा का वचन है.....जब द्रौपदी ने श्री कृष्ण की कलाई की चोट पर अपने आँचल का टुकडा बांधा था...तो उसने बदले में कुछ भी पाने की इच्छा नही की थी....वो तो उनका निस्वार्थ प्रेम था....फ़िर भी उसकी जरूरत के समय श्री कृष्ण ने उसकी मदद की..."
"लेकिन माँ....मैं उस जमाने की नही हूँ...."
"जानती हूँ....लेकिन भाई-बहन का प्यार तो उस जमाने से आज तक वही है..न...जब भी तुम्हे किसी चीज़ की जरूरत होती है...वो तुम्हे बिना मांगे ही तुम्हारे भाई लाकर देते है...तुम कभी भी परेशान हुई..तो उसे भी तुम्हारे भाइयों ने दूर किया...फ़िर भी तुम केवल गिफ्ट के बारे में सोचकर राखी बांधो..ये तो सही नही है न..."
"माँ!तो क्या मुझे उनसे कोई गिफ्ट नही लेनी चाहिए..."
"अरे पगली....मैंने ये तो नही कहा...भाई जो प्रेम से दे..उसे उतने ही प्रेम से लो...लेकिन कभी गिफ्ट के लिए अपने भाइयों से ये प्यारा बंधन न तोड़ना...समझीं...."
"समझी...माँ!अगर आज भी राखी भेजूगी तो समय पर मौसी को मिल जायेगी...मैं पहले ये काम करके आती हूँ....और हाँ..थैंक यू माँ..मुझे राखी का महत्त्व समझाने के लिए...."
जानती हूँ इस कहानी से कई बहनों को बुरा लग सकता है...लेकिन इसकी प्रेरणा भी एक बहन से ही मिली है.मैं राखी लेने के लिए गई थी..और अपने भाइयों के पसंद के हिसाब से राखियाँ निकालने में जुटी थी.....मम्मी से काफ़ी राय भी ले रही थी...तभी एक लड़की आई..और कुछ राखियाँ यूँही उठाकर मुझसे बोली..."इतनी मेहनत क्यूँ कर रही है...यार..मतलब तो गिफ्ट पाने से है..जो भी राखी बांधो,गिफ्ट तो मिलेगा ही..."
एक बार तो मुझे लगा कि मैं उसे अच्छा सा जवाब दे दूँ...लेकिन ऐसा करने से पहले ही मुझे विचार आया...कहीं न कहीं हम सभी के मन में ये बातें तो है न....उसने इसे यूँ ही बोल दिया..हम अपने भाइयों कि पसंद कि सारी चीजें करते हैं...लेकिन गिफ्ट कि चाह तो हमारे मन में होती ही है...
कोई बुरी सी लगने वाली बात हमारे भीतर भी जागने कि कोशिश कर रही है....क्या हम भी कभी गिफ्ट के लिए अपने भाइयों का प्यार भूल जायेंगे...नही...आज से ही हम सभी बहनों को ये प्रण लेना चाहिए कि "हम अपने भाइयों के लिए अपने अन्दर एक निस्वार्थ प्रेम जगाएँगी..."हम सभी कह सकती हैं कि हम अपने भाइयों से ऐसा ही प्रेम करती हैं...लेकिन एक बार ईमानदारी से सोचिये ये लालच तिल जितना ही सही.....हमारे अन्दर है...
एक बहन होकर भी कभी इस तरह की बातें लिखूंगी और बहनों का दिल दुखाउंगी....सोचा ना था....
कथा अच्छी है।
ReplyDeleteबधाई।
Achchha laga aapke jazbaaton ko jaanna.
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeletebahut accha likha hai neha ji .. kahani man ko choo gayi hai .. badhai sweekar karen..
ReplyDeleteaabhar
vijay
pls read my new poem "झील" on my poem blog " http://poemsofvijay.blogspot.com
good post...written by heart.
ReplyDeleteमन के विचारों को यूँ लिखा तो अच्छा लगा पढ़कर
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