सूरज की पहली किरण और पंछियों के शोर से ये आभास हुआ कि सबेरा हो गया...वैसे खिड़की से छनकर आती किरणें सीधे मेरे मुँह पर पड़ रही थीं..लेकिन मुझे कोई परेशानी नहीं हो रही थी..बल्कि ये मुझे एक सुकून दे रहीं थीं..ऐसा लग रहा था मानो ये किरणें थककर निढाल हो चुके मेरे शरीर को अपनी ऊष्मा से ऊर्जा दे रही हो...सुबह इतनी कोमल लगने वाली किरणें दोपहर में कैसा भीषण रूप धर लेती है...जैसे बचपन में कोमल मन वाले हम बड़े होते-होते कठोर हो जाते हैं... लेकिन शाम को यही किरणें अपनी सुबह की चंचलता और दोपहर की कठोरता को छोड़ बिलकुल नया रूप धर लेती है...शांत लगती है..जैसे कोई योगी त़प में मग्न हो और उसे मोक्ष मिलने वाला हो..कितना अनोखा और सुखद है ये विचार॥
यही सब सोचते हुए जब घडी पर नज़र पड़ी तो ८ बजा देख मैं उछल कर ज़मीन पर आई और जल्दी से नहाकर नाश्ता करके काम पर जाने की तैयारी करने लगी...इस भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में ऐसे खुशनुमा विचारों के लिए भी जगह नहीं रह गई है....
ज़िन्दगी की दौड़ भाग में सुबह की खूबसूरती को निहारने का मौका भी न मिलेगा...सोचा ना था....
नेहा,
ReplyDeleteआप बहुत सुन्दर लिखती हो. एक दम सरल और प्रवाही ढंग से. लिखती रहे..इस मुश्किल और रफ़्तार के शिकार दौर में सुकूनभरे शब्द बहुत ज़रूरी हैं. यही इंसान को इंसान बनाए रखते हैं. ज़िंदगी में नमी बनाए रखते हैं.
बहुत सुन्दर!
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नवरात्र के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री को प्रणाम करता हूँ!
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नवसम्वतसर सभी का, करे अमंगल दूर।
देश-वेश परिवेश में, खुशियाँ हों भरपूर।।
बाधाएँ सब दूर हों, हो आपस में मेल।
मन के उपवन में सदा, बढ़े प्रेम की बेल।।
एक मंच पर बैठकर, करें विचार-विमर्श।
अपने प्यारे देश का, हो प्रतिपल उत्कर्ष।।
मर्यादा के साथ में, खूब मनाएँ हर्ष।
बालक-वृद्ध-जवान को, मंगलमय हो वर्ष।।
कभी रुक कर दो पल जी लेने के लिए सोचने का वक्त ही कहा?
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है..
आप सभी का धन्यवाद...
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