शायद ये विविध भारती का प्यार ही था जो मुझे वोइसिंग की दुनिया से लगाव हुआ और मैं वोइस आर्टिस्ट भी बन गई..और १६ मई को मुझे एक सुनहरा मौका मिला...विविध भारती जाने का...बस सुबह से ही अपने सपनों की दुनिया में जाने की ख़ुशी संभाले नहीं संभल रही थी...मैं अपने बड़े भाई के साथ जाने वाली थी...उनकी पहचान युनुस भाई (हाँ...युनुस जी को अब तो इस नाम से पुकारा ही जा सकता है..) से इन्टरनेट पर हुई थी....घर से विविध भारती कुछ ४५ मिनट की दूरी पर है..जब घर से निकले तो रास्ते में ही हल्की बूंदाबांदी ने मानो मेरे सपने के सच होने की ख़ुशी में मेरे मन के भावों को बयां किया...ऑटो से हाथ बाहर निकालकर बूंदों को हाथ में लेकर मैंने भी ईश्वर का धन्यवाद किया...
हम विविध भारती पहुंचे...युनुस भाई से पहली बार मिलकर भी कोई औपचारिकता की बातें नहीं हुईं वो कुछ इस तरह से मिले जैसे कोई पुराना दोस्त अचानक मिल जाता है और बस अपने दोस्त के ताज़ा हालचाल पूछ लेता है...कोई औपचारिकता नहीं...?...आश्चर्य तो हुआ...पर जब उनमे अपनी आवाज़ से लोगों को अपना बनाने की ताकत है तो फिर सामने बैठे व्यक्तियों की तो बात ही क्या...
जब हम पहुंचे तब विविध भारती में एक प्रोग्राम लाइव चल रहा था...सखी सहेली...ये प्रोग्राम मेरा बहुत ही फेवरेट हुआ करता था...ऐसा लगता था मानो किसी सहेली से ही बातें हो रही हों..
खैर उनसे बातें चल ही रही थी की एक शख्स उनसे मिलने पहुंचे और युनुस भाई ने उनका परिचय करवाया कि, "ये कमल जी हैं..." कमलजी भी उन बातों में शामिल हो गए...हंसी- मज़ाक का कुछ ऐसा दौर चला कि ऐसा लगा ही नहीं की हम यहाँ पहली बार आये हैं और इन सभी से पहली बार मिले हैं....(वैसे रेडिओ के जरिये हम तो कई बार इनसे मिल चुके थे...)...कमल जी ने मेरा मार्गदर्शन भी किया कि मुझे विविध भारती के लिए किन- किन बातों पर ध्यान रखना चाहिए...उनसे बातें करके अच्छा लगा....
वैसे सच कहूँ तो ज्यादातर बातें युनुस भाई, कमलजी और मेरे भाई आलोक भैया के बीच ही चल रही थी....मैं तो यहाँ भी एक श्रोता की भूमिका में ही थी....लेकिन सुनकर भी कितना कुछ सीखा जा सकता है ये बातें उस दिन मुझे समझ में आई....दरअसल जब बातें ही इतनी खुबसूरत चल रही हों तो उन्हें बीच में रोकना तो सब से बड़ा गुनाह है....और उनको देखकर कुछ ऐसा लग रहा था..जैसे वो कोई बिछड़े दोस्त हों और कई अरसों बाद मिल गए हों...और जितनी बातें एक-दूसरे से कर सकें...कर लेना चाहते हों...मुझे याद है कुछ २-३ घंटे हमने वहां बिताये...फिर भी लग रहा था जैसे अभी तो आये हैं...
वो दिन कुछ अनोखा था....एक तोहफे की तरह...जो मुझे अचानक से मिल गया था....इस तरह से कभी विविध भारती में जाकर युनुस भाई और कमल जी से मिलने का मौका मिलेगा...सोचा न था....
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नेहा जी आपके ब्लाग पर पहली बार आना हुआ है और रोचक संस्मरण पढने को मिला विविध भारती तो हमारे घर की जान है |मेरी श्रीमती जी दिन भर सुनती रहती है रही युनुस साहेब और कमल जी की बात उन पर तो कुछ कहा ही नहीं जा सकता | आपके उज्जवल भविष्य की शुभकामनायें देना चाहता हूँ |
ReplyDeletenice anecdote !!
ReplyDeleteसौभाग्यशाली दिवस था वो आपके लिए...युनुस भाई से तो खैर हम भी मिल लिए लेकिन विविध भारती जाकर नहीं...:)
ReplyDelete@ सुनील कुमार-सुनील जी,विविध भारती तो है ही ऐसी जिसने एक बार सुन लिया...उसके बिना रह नहीं सकता...
ReplyDelete@ज्योति मिश्रा-थैंक्स ज्योति...
@उड़न तस्तरी-सौभाग्यशाली दिन तो था..
"Sahsa Pani Ki Ek boond Ke Liye" Bahut Hi Achhi Rachna. Padhe Love Story, प्यार की बात aur bhi Bahut kuch online.
ReplyDeleteऔर उस दिन के बाद आने का सिलसिला ही बन गया ....सोचा ना था न :)
ReplyDeleteबढिया लिखा है .
उस दिन के बाद तो नहीं हाँ..कुछ सालों बाद रश्मि दी
Deleteपांच साल पहले लिखा था आपने ये. तब हमें कलम पकड़ने तक की तमीज़ नहीं थी. खुद को अंडरएस्टिमेट ना कीजिये. आप शानदार लिखती हैं.
ReplyDeleteधन्यवाद मुबारक जी..आपकी लेखनी भी कमाल है
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