Monday, February 25, 2013

तलाश एक दोस्त की



लोग अक्सर अपने सबसे अच्छे दोस्त के बारे मे बात करते हैं...हर एक का कोई न कोई ऐसा दोस्त होता है जिसके सामने वो हर बात खुलकर कर पाते हैं...चाहे वो कैसी भी बातें हों...बिलकुल जय-वीरू जैसी दोस्ती...जहां कोई पर्दा नहीं होता न ही कोई दुराव छिपाव होता है..और लड़कियों की तो ऐसी सहेलियाँ होती ही हैं...उनके पास ढेर सारी बातें जो होती है और उन्हे कहना कितना ज़रूरी होता है ये तो एक लड़की ही जान सकती है(कहते हैं न की लड़कियों के पेट मे बातें नहीं पचतीं...वैसे ये बात सब पर लागू नहीं होती फिर भी)...ऐसा एक सच्चा दोस्त सभी के पास होना ही चाहिए...

पर मेरे जीवन मे आज तक कभी ऐसे किसी दोस्त का आना ही नहीं हुआ...दोस्ती कइयों से हुई...स्कूल के समय तो पूरी क्लास की लड़कियों से दोस्ती थी..लेकिन कभी कोई ऐसी सहेली नहीं मिली जिसके साथ मैं अपने हर सुख-दुख की बातें कर सकूँ...आगे की पढ़ाई प्राइवेट ही की तो बस केवल परीक्षा के समय ही जाती थी..फिर भी लोगों से दोस्ती हुई लेकिन यहाँ भी कभी ऐसी कोई सहेली नहीं मिली...बाद मे जब वॉइस ओवर की क्लास मे जाने लगी यहाँ कई लोगों से दोस्ती हुई...पर सच्चे दोस्त की तलाश यहाँ भी अधूरी ही रही...जॉब के लिए जाने लगी तो बहुत अच्छा माहौल मिला...यहाँ तो बहुत बड़ा ग्रुप था हमारा...हम कई बार बाहर लंच पर भी गए...आठ घंटे साथ बिताते थे...एक कलीग तो अक्सर मुझे घर तक भी छोड़ दिया करती थी...उसके साथ मेरी बहुत जमती थी पर फिर भी एक दूरी सी बनी हुई थी...हम आपस मे कई बातें करते थे लेकिन फिर भी कहीं न कहीं कुछ बातें ऐसी रहती थीं जहां हममे भी एक दूरी बनी रहती थी...और जॉब छोडने के बाद वो रोज़ होने वाली बातें भी धीरे-धीरे कम होती गईं...वैसे अब कभी भी बात हो हफ्ते मे,महीने मे पहले की तरह ही बाते होती हैं...यही हाल बाकी सहेलियों के साथ भी है...पर किसी भी परेशानी मे तुरंत फोन कर दूँ या मदद मांग लूँ ये झिझक अब भी बाकी है...


कल जब दो सहेलियों को आपस मे बात करते खिलखिलाते हुये देखा तो मन मे ये ख्याल आया कि कभी मेरी ऐसी कोई सहेली क्यूँ नहीं बनी जिसके साथ मैं भी खुलकर बात कर सकूँ,अपने दिल की बातें बाँट सकूँ और उसकी बातें सुन सकूँ...सारी दुनिया से बेफिक्र होकर जी सकूँ...कभी-कभी लगता है कि मेरी ऐसी सहेली न होने का कारण कहीं मैं ही तो नहीं...जो कभी किसी से खुल ही नहीं पायी या शायद हमारा जगह बदलते रहना...जिसके कारण मैंने कभी किसी से इतना घुलने की कोशिश ही नहीं की...और फिर एक आदत सी बनती गयी अपनी बातों को खुद तक ही रखने की...लगने लगा कि कोई ऐसा हो ही नहीं सकता जिससे अपने मन की बातें बाटीं जा सके...
यूं तो किसी की कमी खलती भी नहीं लेकिन कभी-कभी ऐसे दिन भी आते हैं जब मैं कई-कई बार अपने मोबाइल को चेक करती हूँ कि शायद किसी सहेली ने मुझे याद किया हो या sms किया हो...लेकिन कुछ मिलता नहीं..कई बार मन होता है कि किसी से बात करूँ...बिना किसी खास बात के बस यूं ही बात करूँ....आधे घंटे हो या एक घंटे हम बस बातें करें...सिर्फ बातें...शहर की नहीं...मौसम की नहीं...जीवन की मुश्किलों की नहीं...ऑफिस की परेशानियों की नहीं...बस बातें...ऐसी बातें जो हमें सिर्फ सुकून दे...अपनी परेशानियों को एक-दूसरे को सुनाने की बातें नहीं...ऐसी बातें जिनके बंद होने पर भी लगे की कुछ कमी रह गयी और कुछ बातें बाकी रह गईं...ऐसी बातें जहां कभी भी किसी को ये सोचना न पड़े की अब क्या कहूँ...?बल्कि ये कहना पड़े कि बाकी बातें कल करें...?ऐसी बातें जिसके बाद तीन दिन खुशनुमा बीते...सारे दिन की थकान भुला देने वाली बातें...एक-दूसरे को खुशी देने वाली बातें जहां हम अपनी परेशानियों को भूल जाएँ और कुछ पल के लिए ही सही उन बातों मे खोकर सारी खुशियाँ पा लें...


ऐसी बातों के बारे मे लिखते हुये भी कितना सुकून मिल रहा है...पर अफसोस जब भी मेरा मन होता है कि किसी से बातें करूँ....फोन मे कोई ऐसा नंबर ही नहीं मिलता जहां ऐसी बात हो सके...बिना सिर पैर की बात...बिना मतलब की बात...आज सोचती हूँ शायद किसी से घुलने की कोशिश की होती तो आज ये कमी न खलती...वैसे ऐसे दिन कभी-कभी ही आते हैं और दो दिन बाद मैं फिर किसी अच्छे दोस्त की तलाश को भूलकर अपनी दुनिया मे डूब जाती हूँ..
पता नहीं ऐसा कितने दिन होगा...वैसे दोस्ती करने की कोई उम्र नहीं होती शायद कभी मुझे कोई ऐसा सच्चा दोस्त मिल ही जाए...जिसके सामने अपना मन खोलने मे कोई झिझक नहीं होगी...सोचने मे क्या जाता है...एक नयी सोच है क्यूंकी पहले तो कभी ऐसा...सोचा ना था...

9 comments:

  1. बढ़िया प्रस्तुति |
    आभार आदरेया ||

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  2. जीवन में जो ढूंढना चाहो मिल ही जाता है ... पर इमानदारी जरूरी है अपने आप से ...

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  3. Nice post.....
    Mere blog pr aapka swagat hai

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  4. दिलकी बातें शेयर करने से दिल काफी हल्का हो जाता है पर दोस्ती में दिल मिलना जरुरी है अन्यथा औपचारिकताएं रह जाती हैं. सुंदर लेखन के लिये बधाई.

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  5. नेहा तुम्हरे ब्लॉग को ज्वाइन भी कर रही हूँ. धन्यबाद.

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  6. neha ji bahut hi dil se likha hai aapne

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  7. नेहा जी बस यू ही आपकी ये पोस्ट पढने को मिली ,, आपने ना सिर्फ अपने आप को बल्कि हम सब को भी इतने खुबसूरत शब्दों में अभिव्यक्त किया है जिसका कोई जवाब नहीं। धन्यवाद

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