कुछ दिन पहले मुझे एक मेल आई जिसमे लिखा था कि कोई मेरी
ब्लॉग पोस्ट “क्यूँ बनें सती सावित्री जब सत्यवान कहीं नहीं” को अपना बता
रहा है,उसमे दो लिंक भी दिये हुये थे...ये मेल मुझे राजीव जी(नाम बदला हुआ है) की
ओर से आई थी...दोनों लिंक फेसबुक की थी और वो सिर्फ उनके मित्रों तक ही सीमित
थी...सो चाहकर भी मैं उसका उपयोग नहीं कर पा रही थी...पर मन मे एक खलबली सी मची
थी...क्या करें...जब चोरी हुई थी तब पता नहीं था,लेकिन अब
पता चलने के बाद चुप बैठा नहीं जा रहा था...और मदद करने वाले से और मदद मांगना
थोड़ा अजीब लग रहा था...पर एक बार जब बात सामने आ ही गयी तो कुछ तो करना ही था..मन
मे आया जब बिना मांगे कोई मदद कर रहा है,वो भी अपने दोस्त के
खिलाफ,तो शायद पहल करनी चाहिए...राजीव जी से थोड़ी मदद और
मांगी...और उन्होने मदद की भी दो स्नैप शॉट भेजकर एक तो था...उस महान महिला का जो
बड़ी ही बेशर्मी से हमारी पोस्ट को अपनी बताकर लोगों की लाइक बटोर रहीं थीं और
दूसरा स्नैप शॉट था उनके पति देव का जो बहुत ही गर्व के साथ उसे शेयर किए हुये थे
अपनी प्यारी पत्नी का लेखन बताते हुये...मुझे दोनों पर बहुत गुस्सा आया...
अब आया अगला कदम मैंने उन महानुभाव से बात की और उन्हे
बताया कि ये पोस्ट जो वो अपनी पत्नी की लिखी हुई बता रहे हैं वो उनकी नहीं बल्कि
मेरे ब्लॉग मे लिखी हुई मेरी रचना है...पर वो तो ये बात मनाने को तैयार ही नहीं थे,उनका
कहना था कि ये उनकी पत्नी ने ही लिखा है वो भी दो साल पहले,जबकि
मैंने खुद इस पोस्ट को 23 अगस्त को लिखा था...ये तो हो सकता है कि दो लोग एक ही
शीर्षक इस्तेमाल करें लेकिन वही शुरुवात और (भले ही स्नैप शॉट मे दिख नहीं रहा)
लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि उस पोस्ट को अगर पूरा देखा जाए तो उसका एक-एक अक्षर
समान होगा...और शायद आखिरी तीन शब्द “सोचा ना था....” भी हो सकता है...जो मेरी हर पोस्ट
में होता है...लेकिन वहाँ ये सारी बातें कोरी ही साबित हुई और “उल्टा चोर कोतवाल
को डांटें” वाली स्थिती हो गयी...और कुछ समय बाद उन महानुभाव ने जवाब देना ही बंद
कर दिया...अब न तो उनसे बात की जा सकती थी और न ही मैं ऐसी अनोखी नस्ल के इंसान से
बात करना चाहती थी..
लेकिन ये बात इतनी सरल नहीं है कि आप अपने विचारों को ब्लॉग
मे लिखते हैं ताकि उन पर लोगों के विचारों को जान सकें और यहाँ कुछ लोग ऐसे हैं जो
सिर्फ “कॉपी-पेस्ट” करके लोगों के सामने किसी दूसरे के विचारों को अपना बताकर
वाहवाही बटोर रहे हैं...जबकि कुछ ऐसे लोग भी हैं जो आपकी पोस्ट और विचारों को
लोगों तक पहुँचने के लिए उन्हे अपने ब्लॉग मे शामिल करते हैं पर आपके नाम के साथ,वो भी
आपको बताने के बाद..
उन महानुभाव ने जो भी किया और कहा...ये बात उन्हे भी पता है
और मुझे भी कि वो पोस्ट किसकी है...लेकिन जिस सरलता से उन्होने इस बात को झुटला
दिया उससे ये लगता है कि ये उन्होने पहली बार तो नहीं किया है..अगर राजीव जी ने
मुझे नहीं बताया होता,तो मुझे ये बात कभी पता भी नहीं चलती जैसे शायद
आप में से कइयों को पता भी नहीं होगा और आपकी पोस्ट किसी और के नाम से वाहवाही पा
रही होगी...इसलिए मैं ये बात सबके सामने लाना चाहती थी..
आए दिन चोरियों की खबरें न्यूज़ चैनल मे देखते ही रहते हैं लेकिन विचारों की चोरी और सीना जोरी का ऐसा तमाशा...सोचा ना था....
ऐसा अक्सर लेक्ग्कों के साथ होता है... मेरी कई रचनाएँ चोरो हुई... कुछ ने गलती मान कर मेरा नाम लिख भी दिया और कुछ हठ धर्मिता दिखाते रहे...
ReplyDeleteजय बोलो बेईमान की.
ReplyDeleteअब क्या करे ..उनका कोई अलग गाँव, शहर तो नहीं होता हैं न ....
ReplyDeleteफिलहाल तो इस बात से मन को सांत्वना दी जा सकती है कि किसी भी तरीके से ही सही लेकिन आपके विचार लोगों तक पहुँच तो रहे हैं।
ReplyDeleteबाकी आप कितने भी ताले लगा लीजिये, चोर तो चोरी कर ही लेंगे।
neha ji ..ye duniya hai..pata nahi yahan kab kya ho sakta hai... :)
ReplyDeleteचोरी और सीनाज़ोरी, उल्टा चोर कोतवाल को डांटे जैसे मुहावरे भी शर्मिंदा हो गए होंगे इस बात पर. वैसे आप लीगल एक्शन ले सकती थी उन पर.
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