आज नवभारत में एक ख़बर पढ़ने मिली..मध्यप्रदेश के भिंड ज़िले के किशूपुरा गाँव की प्रियंका भदौरिया ने अपनी शादी के मौके पर ससुराल वालों से चढ़ावे के रूप में गहने की बजाए 10,000 पौधे लाने का संकल्प लिया।उससे भी अच्छी बात ये कि ससुराल वाले उसकी बात से सहमत हुए और अब ये पौधे मायके और ससुराल में लगाए जाएंगे।
आज तक स्त्रियों का गहनों के प्रति प्रेम और लगाव ही देखा और सुना था,पर शायद प्रियंका ही असली गहनों की पहचान कर सकी।प्रकृति ही नहीं बचेगी तो सोने-चांदी के गहने पहनने के लिए कौन बचेगा?..जहाँ शादियों में अंधाधुंध खर्च(चाहे कर्ज़ लेकर किया जाए)गहने,गाड़ी,पकवान के नाम पर दिखावा को ही अहमियत मिलने लगी है..ऐसे वक़्त में ये एक सकारात्मक बदलाव है,जिसे दोनों पक्षों ने स्वीकारा..सोचने वाली बात है शादियों में जितना खर्च किया जाता है,उसका दस प्रतिशत भी पर्यावरण को बचाने में लगाया जाए तो अब भी स्थिति को सुधारा जा सकता है।दस प्रतिशत न भी लगा सकें तो कम से कम दो पेड़ लगा दें..बच्चों के जन्मदिन की शुरुवात सुबह वृक्षारोपण से करें..बाद में जैसे मनाना हो मनाएँ।ज़रूरी नहीं है कि आप अपने खर्चों में कटौती करके ही पर्यावरण के लिए कुछ कर सकते हैं..अगर रोज़ खाए फलों के बीज भी बगीचे,सड़क के किनारे डाल दें तो भी जाने कितने पेड़ उग जाएंगें।अगर कोई मन से करना चाहे तो ज़्यादा साधनों की ज़रूरत नहीं..बस कोशिश की ज़रूरत है।
पृथ्वी दिवस पर करीब-करीब सभी ने अपनी ओर से प्रकृति की दशा पर चिंता व्यक्त की..वो सारे विचार उसी तरह के थे,जैसे कोई अपने दु:खी मित्र के पास जाकर दो सहानुभूति के शब्द कह देता है और उसके घर से निकलते ही उसके दु:ख से ख़ुद को अलगकर अपने काम में लग जाता है।दूसरी ओर एक सच्चा मित्र भले ही सहानुभूति न प्रकट करे पर अपने मित्र का पूरा साथ देता है और हर संभव कोशिश करता है कि मित्र की परेशानी दूर हो जाए।प्रकृति को सहानुभूति के दो शब्द कहने वाले मित्र की नहीं साथ निभाने वाले मित्र की ज़रूरत है।प्रकृति की दशा पर चिंता व्यक्त करने से कुछ नहीं होगा..हाँ इस तरह के सकारात्मक क़दम छोटे-छोटे ही सही कुछ बदलाव ज़रूर ला रहे हैं।इस बेहतरीन सोच के लिए प्रियंका को मेरा प्रणाम और एक नए सुखद जीवन के लिए शुभकामनाएँ।
पर्यावरण हमसे सिर्फ़ थोड़ी-सी देखभाल मांगता है,जहाँ प्रकृति बिना स्वार्थ हमारे लिए इतना कुछ करती है..और हम उसके लिए थोड़ा भी नहीं कर सकते।निस्वार्थ भाव से हमारे लिए दोनों हाथों से अपनी प्यार लुटाती प्रकृति के लिए हम कुछ नहीं कर रहे.कम से कम स्वार्थ के वशीभूत होकर ही कुछ करें।स्वार्थ से आगे बढ़कर कोई प्रकृति के लिए ऐसा कुछ करेगा और हम सबको आइना दिखाएगा...सोचा ना था....
आज तक स्त्रियों का गहनों के प्रति प्रेम और लगाव ही देखा और सुना था,पर शायद प्रियंका ही असली गहनों की पहचान कर सकी।प्रकृति ही नहीं बचेगी तो सोने-चांदी के गहने पहनने के लिए कौन बचेगा?..जहाँ शादियों में अंधाधुंध खर्च(चाहे कर्ज़ लेकर किया जाए)गहने,गाड़ी,पकवान के नाम पर दिखावा को ही अहमियत मिलने लगी है..ऐसे वक़्त में ये एक सकारात्मक बदलाव है,जिसे दोनों पक्षों ने स्वीकारा..सोचने वाली बात है शादियों में जितना खर्च किया जाता है,उसका दस प्रतिशत भी पर्यावरण को बचाने में लगाया जाए तो अब भी स्थिति को सुधारा जा सकता है।दस प्रतिशत न भी लगा सकें तो कम से कम दो पेड़ लगा दें..बच्चों के जन्मदिन की शुरुवात सुबह वृक्षारोपण से करें..बाद में जैसे मनाना हो मनाएँ।ज़रूरी नहीं है कि आप अपने खर्चों में कटौती करके ही पर्यावरण के लिए कुछ कर सकते हैं..अगर रोज़ खाए फलों के बीज भी बगीचे,सड़क के किनारे डाल दें तो भी जाने कितने पेड़ उग जाएंगें।अगर कोई मन से करना चाहे तो ज़्यादा साधनों की ज़रूरत नहीं..बस कोशिश की ज़रूरत है।
पृथ्वी दिवस पर करीब-करीब सभी ने अपनी ओर से प्रकृति की दशा पर चिंता व्यक्त की..वो सारे विचार उसी तरह के थे,जैसे कोई अपने दु:खी मित्र के पास जाकर दो सहानुभूति के शब्द कह देता है और उसके घर से निकलते ही उसके दु:ख से ख़ुद को अलगकर अपने काम में लग जाता है।दूसरी ओर एक सच्चा मित्र भले ही सहानुभूति न प्रकट करे पर अपने मित्र का पूरा साथ देता है और हर संभव कोशिश करता है कि मित्र की परेशानी दूर हो जाए।प्रकृति को सहानुभूति के दो शब्द कहने वाले मित्र की नहीं साथ निभाने वाले मित्र की ज़रूरत है।प्रकृति की दशा पर चिंता व्यक्त करने से कुछ नहीं होगा..हाँ इस तरह के सकारात्मक क़दम छोटे-छोटे ही सही कुछ बदलाव ज़रूर ला रहे हैं।इस बेहतरीन सोच के लिए प्रियंका को मेरा प्रणाम और एक नए सुखद जीवन के लिए शुभकामनाएँ।
पर्यावरण हमसे सिर्फ़ थोड़ी-सी देखभाल मांगता है,जहाँ प्रकृति बिना स्वार्थ हमारे लिए इतना कुछ करती है..और हम उसके लिए थोड़ा भी नहीं कर सकते।निस्वार्थ भाव से हमारे लिए दोनों हाथों से अपनी प्यार लुटाती प्रकृति के लिए हम कुछ नहीं कर रहे.कम से कम स्वार्थ के वशीभूत होकर ही कुछ करें।स्वार्थ से आगे बढ़कर कोई प्रकृति के लिए ऐसा कुछ करेगा और हम सबको आइना दिखाएगा...सोचा ना था....
सचमुच प्रियंका भदौरिया ने एक आदर्श स्थापित किया है। जानकारी शेयर करने के लिए धन्यवाद।
ReplyDeletejyoti ji,bilkul priyanka ka kaam uttam hai..padhkar protsahit karne ke liye dhanywaad
Deletedhanywaad,roopchandra ji,soochit karne ke liye aur post ko shamil karne ke liye dhanywaad.
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