Sunday, July 16, 2017

मैं लिखना चाहती हूँ



मैं लिखना चाहती हूँ
हर अहसास को,हर जज़्बात को
उम्मीदों को आशाओं को
ख्वाहिशों को,अरमानों को
धड़कन के हर रंग को
हर चाहत और उमंग को
बीती हुई हर बात को
अपनी हर सुबह हर रात को
हर अजनबी के अपनेपन को
और परिचितों के बदले रंग को
अपने हर स्वार्थ,लालच और बेईमानी को
अपनी हर नादानी को
हर हारे हुए पल को
अपने आज को और कल को
अपने हर अपमान को
जाने पहचाने से उस अनजान को
हामी में दबी न को
हर न में छुपी हाँ को
जो कही न कभी,उस बात को
हर राज़ और अंदाज़ को
ख़ामोशी के उस गीत को
मौन के संगीत को
बस लिखना चाहती हूँ
हर उस बात को जो कह न सकूंगी
शायद कभी..

एक ऐसी तुकबंदी जिसके विषय में कभी सोचा ना था....

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