आजकल हर माता-पिता यही चाहते हैं की उनके बच्चे हर क्षेत्र में आगे रहें और इसके लिए वे बच्चे के जन्म से ही प्रयासरत हो जाते हैं....माँ अपने बच्चे को वो सब करवाना चाहती है,जो वो नही कर पायी...और यही उसके पिता भी चाहते हैं...कोई भी अपने बच्चे को किसी दूसरे बच्चे से कम नही देखना चाहते....अगर पड़ोस का बच्चा किसी क्षेत्र में अव्वल है तो उनका बच्चा क्यूँ नही...?..अपनी इस प्रतियोगिता में लीन माता-पिता अपने बच्चों की खुशी और रूचि की सुध लेना ही भूल जाते हैं...उन्हें इससे कोई मतलब भी नही होता कि वे जो कुछ बच्चे से करवाना चाह रहे हैं...बच्चा वो करना चाहता भी है या नही......
आज स्थिति ऐसी है कि छोटे-छोटे बच्चे अपनी स्कूल की ढेर सारी पढ़ाई के साथ-साथ अन्य प्रतियोगिताओं में भी व्यस्त रहते हैं....जिसके कारण न तो उन्हें खेलने का खाली समय मिलता है और न ही कहानियों की किताबें पढने का....मेरी पहचान का ही एक बच्चा,जो अभी कक्षा-३ में है....पाँच ट्यूशन जाता है...उसके अलावा वो स्वीमिंग की क्लास भी जाता है.... ऐसे में बच्चों का बचपन कहाँ जा रहा है?...ये सवाल भी हम ही पूछते हैं..बच्चे भी ऐसे वातावरण में रहकर अपनी मासूमियत भूल रहे हैं..क्यूंकि उनसे इतनी समझदारी की उम्मीद की जाती है...कि वहाँ मासूमियत के लिए कोई जगह नही रहती....कुछ दिनों पहले ही मैंने टी-वी पर किसी अवार्ड शो में एक बाल कलाकार की स्पीच सुनी...कहीं से भी ऐसा नही लग रहा था की वो कोई बच्ची है....हमने कभी उस उम्र में ऐसी समझदारी की बातें नही की...
बिना बचपन की मासूमियत और शरारत के बच्चा.......एक अजीब सा अहसास है..माँ-बाप कभी अपने ही बच्चे से उसका बचपन छीनेगे...सोचा ना था....
waaqai mein aisa nahi socha tha...........
ReplyDeleteek bahut achcha lekh.......
bachche ab vaisa bachpan shayad hi kabhi ji payenge jaisa hamne jiya tha.. kuchh-kuchh vaise hi jaise ham nahi ji paye jaise hamse ek pidhi pahle ke logon ne jiya tha..
ReplyDeleteबिना बचपन की मासूमियत और शरारत के बच्चा......."
ReplyDeleteसही कहा है आज तो बच्चो से उसके बचपन की पहचान ही छीन ली गई है.
ये सब देखकर और सुनकर बहुत अजीब लगता है मुझे ...चाहे वो टीवी हो या आस-पास की जगह
ReplyDeleteबिना बचपन की मासूमियत और शरारत के बच्चा.......एक अजीब सा अहसास है..माँ-बाप कभी अपने ही बच्चे से उसका बचपन छीनेगे...सोचा ना था....
ReplyDeleteसही कह रहीं हैं आप ....बाकचों को अपनी योग्यता के अनुसार बढ़ने देना चाहिए .....!!
सच में कभी-कभी बहुत डरावना लगता है ये एहसास ।
ReplyDelete