आज वोटर आई.डी. के विषय में पूछताछ के लिए कुछ लोग आये....उनका पहला सवाल था,
"ये आपका अपना घर है या किराये का?.....
"किराये का...."
"ठीक है...कोई बात नहीं..."
"....लेकिन आप किस लिए पूछ रहे हैं॥?"
"वो वोटर आई.डी.के लिए......"
"तो जिनका अपना घर नहीं है...वो कैसे वोट देंगे...?"
...आपका अपना घर जहां है..आप वहीँ वोट दे सकते हैं....जवाब मिला...
"लेकिन हम तो पिछले कई सालों से यहाँ रह रहे हैं....तो हम वहाँ वोट देने कैसे जाएँ..."
"....वो तो नहीं पता..लेकिन आपका जहां लिस्ट में नाम होगा आप वहीँ वोट दे सकते हैं..."इस जवाब के साथ वो तो अपना पल्ला झाड़कर चल दिए...और हमारे मन में देश की स्थिति को लेकर कई सवाल हिलोरे लेने लगे....
सोचने कि बात है...(कुछ भी करने से पहले सोचना तो पड़ेगा ही...).....देश में करीब ४० फीसदी लोग तो ऐसे हैं,जिनके पास खुद का मकान होगा ही नहीं....वैसे भी जहां खाने-पीने की चीजें इतनी महंगी हो रही है..वहाँ कोई दाल-रोटी खा रहा है तो उसके जितना अमीर कोई नहीं....ऐसे में जिन्होंने भी पिछले साल घर बनाने या खरीदने के सपने देखे होंगे....वे अपने सपनों से कुछ दूर तो हो ही गए हैं...अब कोई घर न खरीद पाए और किराये के घर में रहे...तो ऐसा तो नहीं कहा जा सकता की वो भारत का नागरिक नहीं है.....या अगर उसका घर किसी और शहर में है भी...तो उसे चुनाव के दिन वोट करने के लिए उसके शहर वापस जाना पड़े....
सबसे बड़ी बात तो ये है कि इस तरह से क्या हम भारत की जनसँख्या का सही आंकड़ा निकाल पाएंगे...?...और अगर ये आंकड़े ही गलत हुए तो इस पर आधारित अन्य आंकड़े कहाँ तक सही होंगे...?......एक आलिशान बंगले में रहने वाला और फूटपाथ में सोने वाला दोनों ही संविधान की नज़र में सामान है..दोनों को ही सामान अधिकार प्राप्त हैं....ये अलग बात है की इन्हें भ्रष्ट समाज में सामान अधिकार नहीं मिल पाते.....लोग फूटपाथ पर सोने वालों को महंगी गाड़ियों के नीचे दबाकर भी बच जाते हैं...........लेकिन हम इनसे इनकी राष्ट्रीयता का अधिकार नहीं छीन सकते....जब हमें किराये के घर में रहने के कारण वोटर लिस्ट में शामिल नहीं किया जा रहा है.....तो जिनके पास सर छुपाने की जगह नहीं है....उनसे कितने अधिकार छीने जा रहे होंगे....इसका अंदाज़ा भी नहीं लगाया जा सकता...
देश का एक महत्वपूर्ण काम "जनगणना" ही जब इस तरह से हो रहा है....तो बाकी वादों और दावों का खोखलापन हम टटोल सकते हैं....अपना घर न होने के कारण हमें हमारे मतदान के अधिकार से वंचित रहना होगा....सोचा ना था....
भाई मेरे वोटर आई.डी.मे नाम किसी और का था जो 5 साल बाद सही हुआ
ReplyDeleteविचारणीय।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया व्यंग्य!
ReplyDeleteहम तो पांच साल से घर छोड़ के दुसरे शहर में रह रहे है.. ना यहाँ हमारा नाम है और ना वहा..
ReplyDeleteअपना नाम किसी भी लिस्ट में नहीं देख कर हम रो रहे है..
और वो कहते है अगर आप वोट नहीं कर रहे है तो सो रहे है..
ऐसा भी हो जायेगा.. ये हमने सोचा ना था :)
सवाल वाजिब है....पर जवाब?
ReplyDeleteजब तक पर्सनल आईडॆन्टिफिकेशन नम्बर का सिस्टम नहीं आयेगा..यह समस्या बनी रहेगी.
ReplyDeleteसुन्दर आलेख!
ReplyDeleteयह चर्चा मे भी लगी है-
http://charchamanch.blogspot.com/2010/04/blog-post_07.html
aap sabhi ne is baat ko socha iske liye aap sabhi ka dhanywaad...........kushji aapkne sahilikha....aise me vote nahi dene wale ko pappu kahen ya sone wala....wo kar bhi kya sakta hai....
ReplyDeleteyahi haal to hamara hai ghar se door zindgi ki daud me hain...vote wale din to bas chutti hi mana paate hain...
ReplyDeleteBahut samayik prashn uthaya hai apane is lekh men----.
ReplyDeletePoonam
ऐ दिल है मुश्किल जीना यहां...
ReplyDelete........... ये है इंडिया मेरी....