Thursday, April 22, 2010

हम सुधरेंगे,युग सुधरेगा

आजकल आई.पी.एल. विवाद ज़ोरों पर है...........जाने कितने ही लोग इन सब के पीछे हैं..........जो कुछ दिनों में सामने आ जायेंगे और कितने ऐसे हैं,जो सामने नहीं आयेंगे....अपनी ताकत के बल पर या यूँ कहें की अपने ऊँचे कनेक्शन की वजह से....

हम सभी अक्सर भ्रष्टाचार की बातें करते हैं....लेकिन अगर हम ध्यान दें तो कहीं न कहीं हम सभी छोटे या बड़े पैमाने पर इस भ्रष्टाचार में शामिल हैं...........जब भी हम किसी ऑटो वाले को ३ से ज्यादा सवारी बिठाने के लिए कहते हैं...या हम उसे कुछ ज्यादा पैसे लेकर ऐसा करने के लिए कहते हैं.....किसी ट्रेफिक पुलिस को १०० का नोट देकर बात को वहीँ रफा-दफा करते हैं.....इसमें जितना दोष ट्रैफिक पुलिस का है उतना ही हमारा भी.........बच्चों के एडमिशन के लिए डोनेशन देते हैं........कुछ लोग तो पैसे देकर परीक्षा के पहले प्रश्नपत्र खरीद लेते हैं या नक़ल करवाते हैं...यहाँ तक की कई बार पेपर चेकिंग पर भी पैसे देकर हेर-फेर किया जाता है......पैसे देकर पास करवाना,नौकरी हासिल करना...ये बातें जो कभी-कभी छोटी लगती है...वही मिलकर देश के भ्रष्टाचार को कई गुना बढ़ा देती है...........हम सभी सरकार को भ्रष्टाचार रोकने का कोई उपाय न करने की दुहाई देते हैं...और ऐसा किसी न किसी दिन होने की कल्पना करके चुप बैठ जाते हैं.....हम भूल जाते हैं कि ये ज़िन्दगी है..कोई फिल्म नहीं,जहां एक ईमानदार पुलिस वाला आकर देश के सभी भ्रष्टाचारियों को ख़त्म कर देता है...और देश में खुशहाली आ जाती है.....ये तो हमें ही करना होगा...छोटे पैमाने पर ही सही....पर कदम तो उठाने ही होंगे.....

आज ही हमें खुद से वादा करना होगा कि कम से कम हम भ्रष्टाचार में शामिल नहीं होंगे....अपनी तरफ से हमसे जितना हो सकेगा हम भ्रष्टाचार को रोकने का उतना प्रयास जरूर करेंगे....किसी और को सुधारने से कहीं ज्यादा आसान है,स्वयं को सुधारना......कहा गया है...हम सुधरेंगे,युग सुधरेगा....

हर बुराई को हम आम जनता अपने छोटे-छोटे प्रयासों से दूर कर सकते हैं,ऐसा पहले कभी....सोचा था....

Thursday, April 15, 2010

एक गंभीर मुद्दा

कल अपनी सहेली के घर गयी....हम आपस में बातें कर रहे थे...हमारे हाथ से एक पेन गिर गया....उसकी मम्मी घबराकर दौड़ती हुई आई...."क्या हुआ...?...........क्या गिरा......?......चोट तो नहीं लगी...?
"नहीं...आंटी सिर्फ एक पेन ही तो गिरा है...."
आंटी बार-बार आतीं कभी चाय पूछती....कभी नाश्ता.......कभी हम ठीक हैं या नहीं ये देखने आ जाती.....

घर वापस आई....तो शायद आंटी को साथ दिमाग में ही ले आई थी............मैं सोचने लगी की वो ऐसा क्यूँ कर रहीं थी...?
अक्सर देखने में आता है...कि माता-पिता या तो बच्चों पर ज़रूरत से ज्यादा ही ध्यान देते हैं या फिर देते ही नहीं.....कुछ ४० फीसदी ही ऐसे होंगे (मेरी नज़र में) जो बच्चों का उतना ही ध्यान रखते हैं,जितना बच्चों के लिए सही हो.....

माता-पिता का ये ओवर पोजेसिव होना कभी-कभी बच्चों के आत्मविश्वास को डिगा देता है....बच्चे अपने माता-पिता पर इतने निर्भर हो जाते हैं की उन्हें बाहर के लोगों से मिलने में एक अजीब सी झिझक महसूस होने लगती है....ऐसे बच्चों को कई बार उनके उन दोस्तों की जिंदगी ज्यादा अच्छी लगती है...जिनके माता-पिता उनकी किसी भी बात पर ध्यान नहीं देते.......इसके विपरीत जिन बच्चों के माता-पिता उन पर ध्यान नहीं देते...वे अपने उन दोस्तों सी जिंदगी चाहते हैं...जिनके माता-पिता उनकी हर छोटी -बड़ी चीजों का ध्यान रखते हैं.....बच्चे कई बार माता-पिता की ज्यादा देखभाल से टेंशन में आ जाते हैं....तो कभी बिलकुल ध्यान न देने के कारण...

मेरी एक सहेली थी...अनीता......वो चाहे कितना भी अच्छा काम क्यूँ न कर ले उसके घर में कभी उसकी तारीफ नहीं होती थी........जबकि मेरी एक दूसरी सहेली मीना के साथ बिलकुल उल्टा था.... वो अगर खुद पानी लेकर पी ले तो भी उसकी तारीफ दिन भर होती थी........मीना शुरुवात में अपनी तारीफ से खुश होती थी...लेकिन बाद में उसे एक आसान  से काम के लिए तारीफें नहीं सुहाती.....इसलिए उसे अनीता का परिवार अच्छा लगता....लेकिन तारीफों के लिए तरसती अनीता को मीना का परिवार अच्छा लगता.........

कई माता-पिता का बच्चों पर इतना दबाव है कि बच्चा अपनी असफलताओं का सामना करने से पहले ही मौत को गले लगा लेता है...आये दिन न्यूज़ में बच्चों की आत्महत्या की ख़बरें आती रहती हैं.....कुछ माता-पिता अपने बच्चों को स्टार बनाने के सपने बचपन से ही देखने लगते हैं.....पिछले दिनों एक डांस रियलिटी शो के ऑडिशन में कई ३-५ साल की बच्चियों ने छोटे कपडे पहनकर आयटम डांस किये......कुछ शो में भले ही इसे बढ़ावा न दिया गया...लेकिन माता-पिता ने अपने बच्चे को ऐसा करने तो दिया न.....ऐसा करते हुए उन्हें अपने बच्चे की मासूमियत छीनने की ग्लानी नहीं हुई......

ऐसी न जाने कितनी ही बातें हैं;ये विषय इतना छोटा नहीं की इसे किसी एक ब्लॉग की पोस्ट में समां लिया जाये...ये एक बहुत ही विस्तृत मुद्दा है.......शायद कुछ माता-पिता को मेरी ये बातें बुरी लगें....तो वो एक बार स्वयं को केवल उपरोक्त ही नहीं हर संभावित मुद्दों पर जांच लें कि वे ऐसे माता-पिता की श्रेंणी में आते हैं या नहीं....अगर नहीं आते तो बुरा मानने की कोई बात ही नहीं....लेकिन आते हैं'तो बुरा मानने का कोई अधिकार मैं उन्हें नहीं देती........

कुछ दिनों पहले न्यूज़ में देखा.....भगवान् का आशीर्वाद दिलाने के लिए माता-पिता नवजात बच्चों के ऊपर खौलती हुई खीर डलवाने को भी तैयार थे,कभी बच्चों को छत फेंका जाता है,कभी लात से रौंदा जाता है....जो दृश्य हम टी.वी. पर देख नहीं पा रहे थे....वे उनके माता-पिता कैसे देखते है.....बल्कि सिर्फ देखते ही नहीं ऐसा करने के लिए रजामंदी भी देते हैं...कोई भी माँ अपने बच्चों को ऐसे ज़ुल्म सहने के लिए सहर्ष दे देगी....सोचा था...

Tuesday, April 6, 2010

हमारी पहचान कहाँ है...?

आज वोटर आई.डी. के विषय में पूछताछ के लिए कुछ लोग आये....उनका पहला सवाल था,
"ये आपका अपना घर है या किराये का?.....
"किराये का...."
"ठीक है...कोई बात नहीं..."
"....लेकिन आप किस लिए पूछ रहे हैं॥?"
"वो वोटर आई.डी.के लिए......"
"तो जिनका अपना घर नहीं है...वो कैसे वोट देंगे...?"
...आपका अपना घर जहां है..आप वहीँ वोट दे सकते हैं....जवाब मिला...
"लेकिन हम तो पिछले कई सालों से यहाँ रह रहे हैं....तो हम वहाँ वोट देने कैसे जाएँ..."
"....वो तो नहीं पता..लेकिन आपका जहां लिस्ट में नाम होगा आप वहीँ वोट दे सकते हैं..."इस जवाब के साथ वो तो अपना पल्ला झाड़कर चल दिए...और हमारे मन में देश की स्थिति को लेकर कई सवाल हिलोरे लेने लगे....

सोचने कि बात है...(कुछ भी करने से पहले सोचना तो पड़ेगा ही...).....देश में करीब ४० फीसदी लोग तो ऐसे हैं,जिनके पास खुद का मकान होगा ही नहीं....वैसे भी जहां खाने-पीने की चीजें इतनी महंगी हो रही है..वहाँ कोई दाल-रोटी खा रहा है तो उसके जितना अमीर कोई नहीं....ऐसे में जिन्होंने भी पिछले साल घर बनाने या खरीदने के सपने देखे होंगे....वे अपने सपनों से कुछ दूर तो हो ही गए हैं...अब कोई घर न खरीद पाए और किराये के घर में रहे...तो ऐसा तो नहीं कहा जा सकता की वो भारत का नागरिक नहीं है.....या अगर उसका घर किसी और शहर में है भी...तो उसे चुनाव के दिन वोट करने के लिए उसके शहर वापस जाना पड़े....

सबसे बड़ी बात तो ये है कि इस तरह से क्या हम भारत की जनसँख्या का सही आंकड़ा निकाल पाएंगे...?...और अगर ये आंकड़े ही गलत हुए तो इस पर आधारित अन्य आंकड़े कहाँ तक सही होंगे...?......एक आलिशान बंगले में रहने वाला और फूटपाथ में सोने वाला दोनों ही संविधान की नज़र में सामान है..दोनों को ही सामान अधिकार प्राप्त हैं....ये अलग बात है की इन्हें भ्रष्ट समाज में सामान अधिकार नहीं मिल पाते.....लोग फूटपाथ पर सोने वालों को महंगी गाड़ियों के नीचे दबाकर भी बच जाते हैं...........लेकिन हम इनसे इनकी राष्ट्रीयता का अधिकार नहीं छीन सकते....जब हमें किराये के घर में रहने के कारण वोटर लिस्ट में शामिल नहीं किया जा रहा है.....तो जिनके पास सर छुपाने की जगह नहीं है....उनसे कितने अधिकार छीने जा रहे होंगे....इसका अंदाज़ा भी नहीं लगाया जा सकता...

देश का एक महत्वपूर्ण काम "जनगणना" ही जब इस तरह से हो रहा है....तो बाकी वादों और दावों का खोखलापन हम टटोल सकते हैं....अपना घर न होने के कारण हमें हमारे मतदान के अधिकार से वंचित रहना होगा....सोचा ना था....