पूरी ज़िंदगी हम लड़कियों को ये कह कर पाला जाता है कि दूसरे
के घर जाना है ये करो...ये मत करो...कभी कुछ गलती हो जाए तो भी यही सुनने मिलता
है...कल को दूसरे घर जाएगी तो वहाँ सब कहेंगे माँ-बाप ने नहीं सिखाया...खाना बनाना
आना चाहिए,घर के काम आने चाहिए,पढ़ाई-लिखाई तो ठीक
है लेकिन सिलाई-कढ़ाई मे भी निपुण रहो...कोई कुछ भी कह दे कभी पलट कर जवाब मत
दो...हर बड़े का आदर करो चाहे वो कैसा भी हो...पूजा-पाठ मे लगे रहो..मेहमान चाहे
कितना भी बेशर्म हो उसके साथ अच्छी तरह पेश आओ...एक तरह से दुनिया भर की सारे गुण
तुम्हारे अंदर होने चाहिए और इसी तरह हमारे सीरियल्स की हीरोइनों को भी दिखाया
जाता है क्यूंकी हमारी नज़र मे शायद एक अच्छी बेटी और बहू का पैमाना ही ये है...
और हम बस इस पैमाने पर खरे उतरने के लिए सारी ज़िंदगी कोशिश
मे लगी रहती हैं...इस उधेड्बुन मे कि क्या
सही है क्या गलत...हम कभी ज़िंदगी जी ही नहीं पाते...और कई बार अपनी कोशिशों मे गलत
साबित होते हैं...गलतियाँ करते हैं...दुखी होते हैं पश्चाताप होता है कि अब तक जो
अच्छी लड़की का रूप सबके सामने आया था...वो कहीं मिट तो नहीं गया...और फिर उसे वापस
पाने की जद्दोजहद शुरू हो जाती है...इस तरह जब ज़िंदगी के वो सारे पल निकल जाते हैं
जिन्हे हमें जीना था...अपने परिवार के साथ...और जब दूसरे घर जाने का असली वक़्त आता
है ऐसे समय मे हम क्या चाहते हैं...?सालों परिवार के साथ रहकर जिस ट्रेनिंग से
गुजरते हुये अपनी ज़िंदगी काटी...उसे भूलकर कुछ दिन तो खुलकर जीने मिले न जाने आने
वाला समय कैसा हो...न जाने वो लोग कैसे होंगे...कम से कम इन कुछ दिनों को तो अपने
परिवार के साथ खुलकर जी लें...जहां न तो पहले वाली बन्दिशें हों न आने वाले दिनों
का डर...पर शायद कुछ ही लोग होते हैं जो इन पलों को भी इस तरह जी पाते हैं क्यूंकी
इन दिनों मे जब हम अपनों का साथ और उनका स्नेह चाहते हैं हमें मिलती है हर पल
सलाह...जाने वाले घर मे कैसे व्यवहार करना है...कैसे रहना है...तो क्या हमारे अपने
परिवार को सिर्फ उस दूसरे घर की फिक्र होती है जहां हम जाने वाले है...उन्हे क्यूँ
लगता है कि उनकी बेटी किसी दूसरे घर मे सिर्फ तभी खुश रह सकती है जब वो उनके लिए
हर पल काम करे या अच्छा खाना बनाकर खिलाये...
क्यूँ नहीं वो ये सोचते कि जब वो दूसरे घर के लड़के को अपने
घर के हिसाब से नहीं बदलना चाहते,वैसे ही वो भी इनकी बेटी को जैसी वो है वैसे
ही अपनाए...क्यूँ हम लड़की के लिए ज्यादा से ज्यादा गुण बताना चाहते हैं...हर एक का
अपना गुण होता है और मैंने आजतक किसी ऐसे को नहीं देखा जिसमे सिर्फ गुण हों...उन्होने
तो अपने लड़के को कभी नहीं टोका...पर आपने तो अपनी लड़की को कभी अपने मन से एक कदम
भी नहीं उठाने दिया...जबकि आपको तो अपनी लड़की के पैदा होते साथ ही ये पता था कि वो
हर वक़्त आपके साथ नहीं रहेगी..फिर तो उसे और भी खुलकर जीने देना चाहिए...मैं ये
नहीं कहती कि उसका मार्गदर्शन नहीं करना चाहिए...लेकिन सिर्फ एक लड़की होने के कारण
उसके लिए एक अलग नज़रिया अपनाना सरासर गलत है...
आज आपके कहे अनुसार चलती है...कल दूसरे घर जाकर उनके हिसाब
से चलेगी....तो वो वक़्त कब आएगा जब वो अपने मन की करेगी,जब वो
बिना किसी रोकटोक की फिक्र किए खुलकर जिएगी...क्या कभी ऐसा कोई पल उसकी ज़िंदगी मे
आएगा...?
अपनी ज़िंदगी से खुद के लिए दो पल निकालना कइयों के लिए इतना मुश्किल होगा...सोचा ना था....
वाह क्या बात है...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
धन्यवाद
Deleteवो वक़्त कब आएगा जब वो अपने मन की करेगी ?
ReplyDeleteयह घर भी उसका अपना कहाँ ,सबको प्रसन्न रख जगह बनानी पड़ेगी !
ReplyDeleteसत्यवान था राज-सुत, हुआ किन्तु कंगाल |
ReplyDeleteएक वर्ष की जिन्दगी, होती मृत्यु अकाल |
होती मृत्यु अकाल, कौन गुण भाया बेटी |
पति ऐसा सुविचार, कहाँ से आया बेटी |
जोश बड़ी है चीज, मगर जब व्यर्थ रोष हो |
करे भला न खीज, चाहती क्यूँ सदोष हो ||
सती स्वत: स्वाहा हुई, बड़ी जिंदगी टेढ़ |
सावित्री कितनी यहाँ, चरा रही हैं भेड़ |
चरा रही हैं भेड़, रहो आजाद हमेशा |
लम्पट ढोंगी दुष्ट, चाहते हरदम ऐसा |
एकल रहती नार, नहीं प्रतिबन्ध यहाँ है |
अच्छे भले विचार, पालिए रोक कहाँ है ||
सार्थकता लिए सटीक प्रस्तुति ... आभार
ReplyDeleteधन्यवाद रवि जी
ReplyDeleteधन्यवाद आप सभी का
ReplyDeleteसुन्दर आलेख है........पर तस्वीर का दूसरा रुख भी है की हर परिवार भी अपनी बेटी का भला चाहता है तभी हिदायत करता है इसकी एक वजह समाज में घटित होता हुआ सत्य भी है लड़कियों को अधिक छूट देने के दुष्परिणाम भी बहुत सामने आते ही रहते हैं अक्सर ।
ReplyDeleteइमरान जी,मैंने मार्गदर्शन से इंकार नहीं किया है...बंधन और मार्गदर्शन मे बहुत फर्क है...दुर्घटना होने के डर से सड़क पर ही नहीं निकलना सही नहीं है...और परिणाम हमेशा छूट या रोकटोक पर नहीं...संस्कार और सोच पर निर्भर होते हैं...ज़रूरी नहीं की हर लड़की जिसे आज़ादी मिली हो वो उसका गलत फायदा उठाए या हर लड़की जिसे बंधन मे रखा गया हो वो सही रास्ता ही चुनेगी...अक्सर बंधन मे रखी लड़कियों को विद्रोह की भावना के कारण अपना भविष्य और परिवार का नाम डूबाते देखा गया है...जबकि परिवार के मार्गदर्शन और सहयोग से लड़कियों को शिखर तक पहुँचते भी देखा है...
Deletebehad gambir vishay vishy pr ek stik aur dhardar najariy.
सोचनीय और विचारणीय प्रस्तुति | बधाई |
ReplyDeleteयहाँ भी पधारें और लेखन पसंद आने पर अनुसरण करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
2012 में ऐसी सोच । मैं तो डफर था इस वक़्त । तुम तो बहुत आगे मेरे से नेहा :( लेखक कितना पिछड़ा हुआ ।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा हुआ
ऐसी कोई बात नहीं है..आप बेहद accha लिखते हैं
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