Friday, August 24, 2012

गोली



कुछ दिन पहले एक पुस्तक पढ़ी..“गोली”...आचार्य चतुरसेन द्वारा लिखी इस पुस्तक मे राजस्थान की एक पुरानी परंपरा को दर्शाया गया है...प्राचीन समय मे ऐसा रिवाज था कि छोटी जाती की लड़कियों को राजा अपनी दासी बनाकर रखते थे...इन्हे गोली कहा जाता था...गोलियों के रहन सहन का पूरा खर्च राजा ही उठाते थे लेकिन उनकी संतान,जो की राजा की ही संतान हुआ करती थी,को राजा का नाम या रुतबा नहीं मिलता था...उन्हे अपने कथित पिता के साथ रहना पड़ता था...जो कि आमतौर पर गोली के सेवक की तरह रखा जाता था...
इस पुस्तक मे इस प्रथा को बहुत ही अच्छी तरह दर्शाया गया है...और ये पूरी कहानी एक गोली के संघर्ष की गाथा है..जिसे पता भी नहीं चलता कि वो कब गोली बन गई है और सारे सुख भोगते हुये भी मन मे एक अलग सी टीस का अनुभव करती है...राजा का उसके प्रति असीम प्रेम उसे उसकी अपनी सहेली से जो की उस राजा की पत्नी है से दूर कर देती है...
एक साधारण और सीधी लड़की के आम जीवन से शुरू हुई ये कहानी उसके मानसिक और सामाजिक विकास तक सुगमता से पहुँचती है...वो न सिर्फ खुद को शिक्षित कर अपना विकास करती है बल्कि बाकी गोलियों के जीवन को सुधारने के लिए भी कदम उठती है...उसे कई बार अपना जीवन दांव पर लगाना पड़ता है लेकिन फिर भी वो इन सारी बुराइयों से लड़ने के लिए आगे रहती है...
किस तरह शिक्षा से एक इंसान का जीवन बादल सकता है और किस तरह एक आम इंसान भी कुरीतियों को मिटाने के लिए आगे आ सकता है...ये बखूबी समझाया गया है...
आचार्य चतुरसेन लेखक की तरह अपने विचार पाठकों पर नहीं रखते बल्कि वो गोली बनकर खुद अपनी जीवन गाथा कहते हैं और अपनी आपबीती सुनाते हैं...वो हमें पूरी तरह से उस समय मे ले जाते हैं...राजाओं की फिजूलखर्ची और सिरफिरेपन को भी खूब अच्छी तरह सामने लाते हैं और एक गोली के रूप मे उनकी खिल्ली उड़ाने मे भी पीछे नहीं रहते....

बहुत ही अच्छा लेखन,घटनाओं का चित्रण इतना खूबसूरत है कि पाठकों के सामने एक-एक दृश्य सजीव हो उठता है...भाषा की अभिव्यक्ति का ऐसा अनूठा उदाहरणसोचा ना था....



6 comments:

  1. http://kuchmerinazarse.blogspot.in/2012/08/blog-post_24.html

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  2. बहुत अच्छी प्रस्तुति!
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (25-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  3. यह पुस्तक मैंने भी पढ़ी है |बहुत अच्छा राजिस्थान का विवरण और उस काल का जीवन राजाओं का | बहुत सुन्दर
    आशा

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

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  5. राजपूताने की वीर गाथाओं से इतिहास भरा पड़ा है. लेकिन उनकी अय्याशियों को बेनकाब करती इस किताब को मेरी लिस्ट में काफी ऊपरी स्थान हासिल है. बहुत अच्छी किताब.

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  6. बहुत ही प्रभावी तरीके से आचार्य ने एक गोली की स्थिति को दर्शाया है। लेखन इतना वास्तविक है कि पढ़ते हुए हम स्वतंत्रता के पहल राजे-रजवाड़ों के माहौल में खुद को खड़ा पाते हैं। यह मेरा बेहद प्रिय उपन्यास है, जिसे मैं कई बार पढ़ चुका हूं।

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