Sunday, December 2, 2012

डिग्री की दौड़




दो दिन पहले एक खबर सुनने मिली कि दिल्ली मे चल रही एक मेडिकल परीक्षा मे फर्जी लड़के-लड़कियां शामिल थे..वो किसी और के बदले परीक्षा दे रहे थे...ये एक बहुत बड़ा रैकेट है और इसका मास्टर माइंड था एक साउथ इंडियन डाइरेक्टर....वो 40 लाख रूपए के बदले एक ऐसे फर्जी लोगों को परीक्षा मे बैठने के लिए उपलब्ध करवाता था...ये खबर देखते ही मुझे एक बात याद आई...
एक साल पहले की बात है मैं एक परिचित महिला से मिली जो एक इंगलिश प्रोफेसर हैं...कुछ महीनों पहले ही उनके पति की मौत भी हो चुकी थी...और वो अब कुछ और काम भी ढूंढ रहीं थीं ताकि अपनी दोनों लड़कियों की पढ़ाई और घर के लिए ज़रूरी साधन जूटा सकें...उन्होने मुझे बताया कि वो स्कूल के बाद एक काम करती है जिसमे उसे प्रोजेक्ट्स बनाना पड़ता है...जो उनके लिए आसान है...मैंने पूछा कि कैसा प्रोजेक्ट...?तब उसने बताया कि ये प्रोजेक्ट विदेशी स्टूडेंट्स के होते हैं...वहाँ रहकर पढ़ने वाले अधिकांश स्टूडेंट्स पढ़ाई के साथ काम भी करते हैं...इसलिए क्लास के बाद सीधे काम पर चले जाते हैं और उनके पास समय ही नहीं होता कि वो अपने प्रोजेक्ट्स पूरे करके उन्हे जमा कर सकें...इसलिए वो अपने प्रोजेक्ट्स खरीद लेते हैं और उन्हे जमा करते हैं...उसने बताया कि उन्हे प्रोजेक्ट्स के बारे मे बताया जाता है और पॉइंट्स मिलते हैं जो उनमे शामिल होने चाहिए और इंटरनेट से ढूंढकर वो प्रोजेक्ट्स बनती हैं...मुझे याद है उनकी ये बात सुनकर मेरे मुह से यही निकला,

“आपके इन्ही प्रोजेक्ट्स के बल पर पास होकर वो सभी कल डॉक्टर बनेंगे और आपके बच्चों का इलाज़ करेंगे...पर शायद उन्हे इतना भी पता नहीं होगा कि वो कर क्या रहे हैं क्यूंकी उनकी पढ़ाई तो आपने की है....”

“हे भगवान...ऐसा बोलकर डराओ मत..” उन्होंने कहा 

हमें अंदाज़ा भी नहीं है कि आने वाले डॉक्टर,इंजीनियर मे से कितने सच्ची योग्यता वाले हैं और कितने उधार की....पर आज कोई नकल मारकर पास होता है या किसी और से प्रोजेक्ट खरीदकर...पर इसका खामियाजा हमें ही भुगतना पड़ेगा... पहले माँ-बाप बच्चों के लिए दुकान से खिलौने खरीदते थे पर आज वो अपने बच्चों के लिए डॉक्टर,इंजीनियर की डिग्री खरीदने लगे हैं...उन्हे कम से कम एक बार सोचना चाहिए कि इस खरीदी हुई डिग्री से दुनिया की नज़र मे भले ही उनका बच्चा डॉक्टर बन जाए पर फैमिली मे डॉक्टर होते हुये भी वो कभी अपनी फैमिली का फैमिली डॉक्टर” नहीं बन पाएगा ....कभी भी घर मे किसी की हालत बिगड़ने पर उसे एक डॉक्टर की हैसियत से संभालने की हिम्मत नहीं कर पाएगा...और लोग कहेंगे की फैमिली मे डॉक्टर था पर कुछ कर नहीं पाया..

डिग्री खरीदनी क्यूँ पड़ती है...?क्यूंकी माँ-बाप चाहते हैं कि उनका बच्चा डॉक्टर बने...इंजीनियर बने...लेकिन वो बनना नहीं चाहते...इसलिए उनका मन पढ़ने मे नहीं लगता...और नौबत आती है डिग्री खरीदने की....जितना पैसा बच्चों के लिए डिग्री खरीदने मे लगाते हैं क्यूँ न उन पैसों से उसे अपने मन की करने दें...उसे मौका दें की वो अपनी मंज़िल खुद चुने...जो बनना चाहे बने...यकीन मानिए वो आपके इन पैसों की और कदर करेगा...आपका नाम वैसे ही रोशन करेगा जैसा आप चाहते हैं...वैसे भी डॉक्टर-इंजीनियर बनकर भीड़ मे खोएगा तो नहीं...अगर साधारण पेंटर भी बन जाता है और खुश रहता है तो और क्या चाहिए...माँ-बाप भी यही चाहते हैं कि उनका बच्चा खुश रहे और ये तभी हो सकता है जब वो अपने मन से अपना करियर चुने और आगे बढ़े...तो उसकी मदद करें डिग्री खरीदकर नहीं बल्कि उसे समझकर...

इतनी गंभीर बात कभी मैं समझ पाऊँगी...सोचा ना था….

4 comments:

  1. सुन्दर बात

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  2. २००१-०२ के आस पास CAT Exam का पेपर लीक होने के पीछे भी ऐसी ही कुछ घटना थी.

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  3. यह तो बड़े स्टूडेन्ट्स की बात थी लेकिन यह सीख तो उन्हें बचपन से ही मिल रही है। मेरे कॉफे में रोज के चार-पाँच बच्चे आते हैं, और मुझसे किसी टॉपिक पर प्रोजेक्ट बनाने को कहते हैं। मैं विकीपीडिया से उन्हे कॉपी कर प्रिन्ट दे देता हूँ, मैं उन्हें समझाता हूँ कि इसे पढ़ो लेकिन मैं जानता हूँ कि कोई उन्हें पढ़ता नहीं सीधे टीचर को बता कर खानापूर्ति कर लेते हैं।

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