अभी ‘क्वीन’ फिल्म देखी मुझे
बहुत अच्छी लगी...और अधिकांश लड़कियों को ये फिल्म बहुत पसंद आई...कंगना राणावत की एक्टिंग
बेहद जानदार है और कहानी भी। सुबह मैंने ‘ज़िंदगी न मिलेगी दुबारा’ देखी थी वो भी कई बार देख चुकी हूँ पर हर बार एक अनोखा सुख मिलता है ऐसी फिल्मों
को देखकर इसका कारण क्या है? क्यूँ ये फिल्मे हर बार देखने पर
अच्छी लगती हैं?
शायद इसलिए क्यूंकी जब हम ख़ुद अपनी ज़िंदगी में कोई काम नहीं
कर पाते या ख़ुद को बंधा हुआ महसूस करते हैं तो कहीं न कहीं हम फिल्म के उस किरदार से
जुड़ जाते हैं...जब वो भी इस तरह की परिस्थिति में होता है,लेकिन जब
वो किरदार कहानी के साथ खुद को आगे बढ़ाता है और उस बंधन से मुक्त होता है...साथ ही
अपना एक नया रास्ता ढूँढता है और अपनी नयी मंज़िल की ओर बढ़ता है तो हम उसके इस एहसास
को जीते हैं कुछ पल के लिए ही सही...और ऐसे कुछ पल हमें वो सुकून दे जाते हैं,हर बंधन से मुक्त होने का एहसास...अपनी हर परेशानी को पीछे छोडकर आगे बढ़ जाने
का एहसास...फिर चाहे वो नौकरी की परेशानी हो या घर की,परिवार
की उलझने हों या रिश्तों की बन्दिशें...हम सब भूल जाते हैं उस किरदार के साथ हँसते
हैं और उसके दुख में दुखी होते हैं,॥एक तरीके से फिल्म के उन
ढाई घंटों में हम ख़ुद को उस किरदार में पाते हैं। जो फिल्म अंत में सुकून दे जाती है
वो हिट हो जाती है और अगर वो सिर्फ एक आम कहानी हो तो दर्शकों को खींच पाने में असफल
होती है।
सोचने वाली बात ये है कि ढाई घंटे का सुकून पाकर बाहर आते ही
हम वो सब भूल जाते हैं और कुछ घंटों में वो एहसास भी चला जाता है और बाकी रह जाती है
वही रोज़मर्रा की भागदौड़। तो क्यूँ न हम इस एहसास को ढाई घंटे से ज़्यादा बढ़ाएँ...क्यूँ
न अपनी ज़िंदगी को खुशनुमा बनाने के लिए हर ज़रूरी कदम बढ़ाएँ ताकि हमें खुशी का,आज़ादी का
और सुकून का वो एहसास ढूँढने के लिए किसी ढाई घंटे का मोहताज न होना पड़े...इसके लिए
चाहे जो करना पड़े...खुश रहना हमारा अधिकार है।
अपनी ज़िंदगी के हर उस पल को तलाशना होगा जो हमें खुशी नहीं देता,हर उस रिश्ते
के बारे में सोचना होगा जो हमें बंधन का एहसास कराता हो...ऐसा हर पल जो हमें सुकून
नहीं देता...ताकि ये पता चल सके कि ज़िंदगी में कहाँ सुधार की ज़रूरत है...और अगर ख़ुद
पता न कर सकें तो मदद लेने में भी कोई हर्ज़ नही...साइकाइट्रिस्ट की मदद लेनी पड़े या
दोस्तों की हर संभव कोशिश करनी चाहिए अपनी खुशी को पाने की,क्यूंकी
जब तक हम खुश नहीं होंगे तब तक हम किसी को कोई खुशी नहीं दे सकते...तो कोशिश कीजिये
अपनी ज़िंदगी में खुशी लाने की ताकि अपनी खुशी की कमी आपको किसी और किरदार के सहारे
ढाई घंटों में न जीनी पड़े।
ज़िंदगी में खुशियों का महत्व फिल्मों के जरिये समझ आयेगा...
सोचा न था....
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