Sunday, July 26, 2015

आज़ादी का दायरा



कुछ दिन पहले बस में स्कूल की दो लड़कियाँ मराठी स्टाइल में एक सी साड़ी और गहने पहने स्कूल बैग के साथ चढ़ीं। सबकी नज़रें उनकी ओर थीं;अच्छीं लग रहीं थी।एक आदमी ने अगले स्टाप में चढ़ते साथ उन दोनों से कहा-"बहुत अच्छी लग रही हो दोनों"।बड़ी लड़की की ओर से कोई ख़ास प्रतिक्रिया नहीं आई,छोटी लड़की शरमा गई।कुछ ही देर में उस आदमी ने उनसे पूछा,"तुम्हारी एक फ़ोटो ले लूँ?"छोटी लड़की बड़ी की ओर देखने लगी जबकि बड़ी लड़की ने तुरंत कहा,"नहीं"
उस आदमी ने एक बार फिर कहा,"तुम दोनों बहुत सुंदर दिख रही हो" (शायद ये बात बोलकर वो उन्हें फ़ोटो लेने की इजाज़त देने के लिए मनाना ही चाह रहा था.)उसकी ये बात सुनते ही बड़ी लड़की ने थोड़ा सख़्त रवैया अपनाते हुए कहा,"हमें पता है..!!"
वो आदमी खिसयानी-सी हंसी हंसकर चुप हो गया।दोनों लड़कियाँ एक-दो स्टाप के बाद उतर गईं..बड़ी वाली लड़की छोटी पर नाराज़ दिख रही थी,और उसे डांट भी रही थी..शायद उसे अपनी समझ अनुसार दुनियादारी सीखा रही थी।

देखा जाए तो आजकल के माहौल में इस तरह की दुनियादारी की ज़रुरत सबको है,ख़ासकर लड़कियों को।इस पूरे वाकये में वो आदमी मुझे तब तक सही लगा,जब तक उसने मना करने के बावजूद दुबारा फ़ोटो लेने की बात नहीं की थी,शायद उसके इरादे ग़लत नहीं थे,पर कहीं न कहीं ज़ादी और दखल के बीच का फ़ासला लोगों को कम ही समझ आता है,और ऐसी स्थिति में ये सीमा तय कर देना  सही है,जो उस लड़की ने निसंकोच किया।पर हममें से कितने लोग हैं जो इस तरह की दखल को रोक पाते हैं?
मुझे उस लड़की पर बहुत गर्व हुआ कि उसने मना करने की हिम्मत की,क्यूंकि मुझे खुद याद नहीं कि आज तक कभी मैंने किसी अजनबी से इतने कड़े शब्दों में बात की हो..पर देखा जाए तो ज़माना भी बदल गया है..तो रवैया भी बदलना चाहिए..आज सबके हाथों में मोबाइल के साथ कैमरा भी है और हम किसी भी व्यक्ति और वस्तु की तस्वीर लेने में हिचकते नहीं..इसके लिए न तो हमें दूसरी बार सोचने की ज़रूरत महसूस होती है और न ही इजाज़त लेने का कष्ट हम उठाते हैं;बात यहीं तक सीमित नहीं रहती ये तस्वीरें सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर शेयर भी कर देते हैं..तो न सिर्फ हम किसी व्यक्ति का एक निजी पल उसकी इजाज़त के बिना चुरा रहे हैं बल्कि उसे लोगों के साथ खुलेआम बाँट भी रहे हैं..और वाहवाही बटोर रहे हैं.

इन दिनों आज़ादी और दखल का भेद समझाने से ज्यादा समझना ज़रूरी है..समझना इसलिए क्यूंकि आप अपनी ज़िन्दगी में होने वाले दखल को तो आसानी से पहचान जाते हैं लेकिन अपनी आज़ादी का दायरा इतना बड़ा रखते हैं कि जो दखल आप दे रहे हैं वो समझ ही नहीं आता..तो अपनी आज़ादी को अपने कैमरे की नज़र न देखें बल्कि सामने वाले की भावनाओं की नज़र से देखें ताकि आप अपनी आज़ादी के साथ ही दूसरों की भावनाओं की भी कद्र कर सकें..और अपनी आज़ादी का दायरा इतना भी न बढ़ाएं कि दूसरों की आज़ादी पर खतरा पैदा हो जाए.
आज़ादी और दखल का ये भेद एक छोटी-सी घटना से सीखने मिलेगा...सोचा न था....


7 comments:

  1. बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये. ,,

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    1. धन्यवाद..पूरी कोशिश रहेगी मदन मोहन जी

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  2. बहुत सही बातें लिखी आपने .. सटीक उदाहरण के साथ...

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    1. धन्यवाद प्रदीप जी

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  3. बहुत सही बातें लिखी आपने .. सटीक उदाहरण के साथ...

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  4. रोज़मर्रा की घटनाओं में से ज़िंदगी चुनना बहुत काबिलियत का काम है. ऐसी पारखी नज़र मिलने की बधाई.

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    1. हौसला अफ़जाई के लिए धन्यवाद

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