कल शाम बारिश की पहली फुहार पड़ी...हवा के साथ ही मन भी शीतल हो गया.सभी अब गर्मी की तपिश से आज़ादी पाने के बारे में सोचने लगे.अब चारों ओर हरियाली दिखेगी.तेज़ बरसती बारिश से जुडा कोई न कोई किस्सा तो सभी के पास हैं,जो अब फिर से चाय-पकोडों के बीच सुनाये जायेंगे.माँ को फिर से बरसात देखकर अपने छाता भूल कर गए बच्चे की चिंता सताएगी.हर शाम घर में न सूखे हुए कपडों की भीड़ देखने मिलेगी.....हाँ भई, कहीं-कहीं बत्ती की आँख-मिचौली भी होगी.अब फ़िर से याद आएगा बारिश में आँगन में कपड़े उठाते हुए गलती से भीग कर जानबूझ कर भीगने का मौका पाना....सड़क पर बहते हुए पानी पर कागज़ की नाव बना कर छोड़ना....मेढकों का शोर और नागराज के दर्शन के लिए भी तैयार रहना होगा...धूल और पसीने से आज़ादी मिलेगी.....सावन के झूले,राखी का त्यौहार...मतलब भैया से मिलने मिलेगा.....भगवान्!ये बारिश का मौसम जल्दी क्यूँ नही आता?
कुछ चेहरों पर खुशियाँ तो कुछ पर ग़म भी है.घर के छप्पर की मरम्मत जल्दी करानी होगी....फ़िर से घर के सामान पानी से बचाने के लिए बर्तन लगाने होंगे...अब उल्टे-सीधे सोना होगा....किसी के सर पर पानी टपकेगा तो किसी के पैर पर....रातों की नींद अब छप्पर पर एक बूँद पानी पड़ते ही उड़ जायेगी.....जब-जब धूप निकलेगी सामान को सुखाने की जद्दोजहद शुरु हो जायेगी....निर्दयी बारिश इसे फिर से भिगाने की पूरी कोशिश करेगी....पानी के नल के पास की नाली नल के गड्ढे से मिल कर पीने के पानी की परेशानी बढाएगी......आए दिन घर पर सांप-बिच्छु से सामना करना पड़ेगा.....रोज़ का काम करने के लिए न जाने कितनी बार भीगना होगा और डॉक्टर की जेब भरेगी.....भीगी लकडियों से चूल्हा जलाना पड़ेगा....भगवान्!ये बारिश का मौसम इतनी जल्दी क्यूँ आता है?
ये बारिश हर एक के लिए अलग अहसास लेकर आती है....ऐसे और भी कई अहसास हैं जिनके बारे में....सोचा ना था....
वाह...बहुत अलग अंदाज़ में आपने बारिश के दो रंग पेश किये हैं...लाजवाब लेखन...
ReplyDeleteनीरज
वाह..ऐसे भी होते है बारिशों के रंग.............. इस पहलू से तो वाकिफ ही न थे
ReplyDeleteबारिस अगर न हो कभी,
ReplyDeleteसब सूखा हो जाय।
पानी बिना न आबरू,
जग भूखा सो जाय।।
अच्छा लिखा है आपने । भाव और विचारों की प्रभावशाली अभिव्यिक्ति रचना को सशक्त बनाती है ।
ReplyDeleteमैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-फेल हो जाने पर खत्म नहीं हो जाती जिंदगी-समय हो तो पढें और कमेंट भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
बहुत सुन्दर भाव प्रस्तुत किए हैं।बरसात के रंग पंसद आए ।।
ReplyDeletejee bombay mein yahan ki mahapalika ke liye bhi kaafi samsyaen hain..saare khule gaddhe band karne hain etc :) wasie humare up ki baarish bas kya batayen..aapne achha yaad dilaya hai..abhi se thand mahsoos ho rahee hai :)
ReplyDeleteपहली बार देखा तब ये सोचा न था कि इस तरह कोई अपनी बात कहने का हुनर रखता होगा. अक्सर कोमेडी बनाते हुए ट्रेजेडी बन जाती है और हास्य को पढ़ते हुए रोना आ जाता है पर आप कहीं नहीं चूकती सच में ऐसा सोचा ना था
ReplyDeletewaah ,
ReplyDeletebaarish ko kya khoob pesh kiya hai aapne ..
padhkar hi bheeg gaya ji
dhanyawad.
meri nayi kavita padhkar mera hausala badahye,,
gareebe sabse bada abhishap hai.....gareeb ke liye har mausam musibat....
ReplyDeletegareebon ke liye har mausam museebat hai. mausam mausami to sampanna logo ke liye hi hota hai.
ReplyDeleteBahut hi sunder tareeke se ek hi baarish ke do vibhinna swaroopon ke chitran ne ek baar phir sochne ko vivash kar diya...
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