Sunday, June 28, 2009

टीम को हमारा साथ

२०-२० की हार के बादकाफ़ी दिनों के अंतराल में फ़िर से टीम इंडिया के खाते में एक नई जीत दर्ज हो गई,जिससे कुछ दिनों पहले तक उनकी घोर निंदा करने वाले भी फिर से उनकी तारीफों के पुल बंधने में लग गए हैं.....जिन्हें उन्होंने ही कुछ दिनों पहले २०-२० की हार के बाद गिराया था।

ऐसे में सोचने वाली बात ये है की क्या ऐसी तारीफों से खुश हुआ जाए या ऐसी निंदाओं से परेशान?जब कोई खिलाडी अच्छा प्रदर्शन करता है तो अगले दिन उसकी तारीफों से उसे सर्वोपरी करार दिया जाता है और अगले दिन यदि वो ही गेंदबाजी या बल्लेबाजी में चुक जाए तो उसे पहले दिन की गई उसकी तारीफ़ से भी ज्यादा बुराई उसे सुननी पड़ती है.हम ये क्यूँ नही समझते की वो भी इंसान ही हैं?बिना आराम के वो कई दिनों से खेलते रहते हैं,यहाँ तक की कई खिलाडी चोटिल भी होते हैं.

जब भी कभी हार का सामना करना पड़ता है,तब हमारी टीम को हमारे सहयोग की जरूरत ज्यादा होती है....और यही ऐसा समय होता है जब हम उन्हें बिल्कुल सहयोग नही करते.जीत में तो हर कोई साथ होता है सही प्रशंसक या फैन तो वही है,जो हार या जीत दोनों स्थिति में साथ दे।

जब २०-२० में टीम की हार हुई थी,तब मैंने एक न्यूज़ चैनल में ही देखा था....उन्होंने इस समाचार के लिए शीर्षक दिया था,"कट गई नाक".क्या ये सही है हमें यही सोचना है।

हमारी टीम को हमारे सपोर्ट की हमेशा जरूरत है,वैसे मुझे क्रिकेट देखने का उतना शौक नही है,लेकिन फिर भी मैं कभी उस बारे में लिखूंगी.....सोचा ना था....

4 comments:

  1. har se mayus hone kee jaroorat nahin hai. haar ke bad phir jeet milegi.

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  2. बिल्कुल..खेल में हार जीत तो लगी ही रहती है बस, प्रयास भरपूर होने चाहिये.

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  3. वे कल फिर हार चुके हैं ... ये भी कोई नाक हुई जो एक दिन कट और दूसरे दिन जुड़ जाती है ....

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  4. भारत में सब एक्सट्रीम में चलता है। सपोर्ट भी विरोध भी। बाकी 2009 में काश तुम मिली होती मैं भी पहले लिखना शुरू कर देता

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