कल शाम "लैंडमार्क"गई,वहाँ 'जेफ्फ्री आर्चर' आने वाले थे.......शायद आप में से कई लोग जानते ही होंगे कि,इनकी बुक यु के बेस्ट सेलर चार्ट में दो महीनो तक नंबर वन पोजीशन में रही.वैसे भैया और मैं जल्दी पहुँच गए थे.....लेकिन वहाँ कि सभी कुर्सियां भर गई थीं.....कुछ लोग बैठे थे और साथ कि कुर्सियों को अपने पहचानवालों/रिश्तेदारों के लिए रोक रखे थे......कहीं भी देखो कुर्सी तो कोई भी खाली नही छोड़ना चाहता.खैर हमने सोचा कि जब आज तक हम यहाँ कभी बैठे ही नही,तो आज क्यूँ कुर्सी कि लड़ाई में पड़े?सो हम रोज कि तरह घूम कर किताबें देखने लगे......क्यूंकि आज लोगों के बैठने के लिए जगह बनानी थी,इसलिए बूक्सेल्फ़ को आपस में सटाकर रख दिया गया था,जिनके बीच से गुजरते हुए भैया ने कहा,"ज्ञान की संकरी गलियों से गुजर रहे हैं".
जेफ्फ्री जी का इंतजार हमने बुक पढ़कर किया.मैंने आज यहाँ 'तरकश' पढ़ी.इसमें जावेद अख्तर जी ने अपने शब्दों में अपने संघर्ष को बखूबी बयान किया है,वैसे मैं इसे पूरा तो नही पढ़ पायी,क्यूंकि जेफ्फ्रीजी आ गए....कुछ देर उन्होंने अपनी कहानियों के बारे में चर्चा की,अपने संघर्ष के बारे में भी बताया,लोगों के प्रश्नों का जवाब दिया और बाद में सबके लिए बुक में साइन भी किया।
आज तक मैंने कई किताबें पढ़ी हैं,लेकिन पहली बार किसी लेखक से मिलने का मौका मिला,बातें ज्यादा गंभीर तो नहीं थी......पर ज्ञानवर्धक थीं.वैसे आप कहीं भी कोई भी बात सुनें या पढ़ें वो कभी न कभी तो काम आती ही हैं।किसी लेखक से मिलने के लिए यूँ ज्ञान की संकरी गलियों में घूमना,इतना अच्छा लगेगा......सोचा न था....
आपको बधाई क्योंकि जो आपने सोचा न था सो मिला...
ReplyDeletedhanyawaad,yogendraji
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