मिस्र के बारे में जब भी बात हो तो......फ़राह और पिरामिड की बातें भी होती ही हैं.फेराहों में एक नाम हमेशा याद किया जाता है.....रेमेसिस-द्वितीय का,जिसने सभी फेराहों से ज्यादा निर्माण कार्य करवाया.....और एक नई मूर्ति प्रथा की शुरुवात भी की.रेमेसिस द्वितीय का जन्म १३०३ में हुआ,उसने अपने पिता के नेतृत्व में फेराह बनने का सफर शुरू किया....वह राज काज देखता था......योद्धाओं से मिलता था...उनका नेतृत्व करता था,उसकी उम्र तब केवल १४ साल थी.इस समय में मिस्र में कई बदलाव भी आए,जैसे.........मंदिरों का निर्माण ज्यादा होने लगा था,इसके द्वारा न सिर्फ़ देवतों को प्रसन्न करने की कोशिश की जाती थी बल्कि लोगों को भी खुश रखा जाता था.....इसके साथ ही मंदिरों में कला का भी विकास हो रहा था...रंगीन चित्र बनने शुरू हो गए थे.इस बीच नील नदी के सुखने से आर्थिक तंगी का सामना तो कुछ समय के लिए ही करना पड़ा लेकिन बाहरी हमलावरों के द्वारा मिस्र के एक बड़े हिस्से पर कब्जा भी कर लिया गया.....जिसे बाद में मिस्रवासियों के आपसी सहयोग से हासिल कर लिया गया,लेकिन मिस्र के राजाओं का देवताओं की तरह किया जाने वाला सम्मान जरूर खो गया.
सेती की मृत्यु के बाद रेमेसिस द्वितीय राजा(फेराहो) बना ...इस समय वो २० साल का था.....फेराहो बनते ही रेमेसिस ने युद्ध के द्वारा मिस्र का विस्तार कर लिया और 4 साल में ही उसने काफ़ी संपत्ति बढ़ा ली.....वो एक अच्छा राजा कहलाया.रेमेसिस का एक ही लक्ष्य था.....केडास(सीरिया) पर विजय,जो की उससे पहले ४ फेराहो नही कर पाये थे.रेमेसिस ने इसके लिए रथ और हड्डी से बने हथियार साथ लिए लेकिन वो केडास के राजा के जाल में फंस गया.उसे जंगल में केडास के दो व्यक्ति मिले;जिन्हें सेना द्वारा बंदी बनाया गया था.....उन्होंने इसे केडास कि सेना के शहर से १२० कि.मी.दूर होने की ग़लत सुचना दी जिसके कारण रेमेसिस ने अपनी सेना को टुकडियों में बाँट दिया...शहर पहुँचते ही वह बुरी तरह फंस गया,विरोधी सेना के पास लोहे के हथियार थे....जब रेमेसिस हार रहा था तभी उसकी दूसरी सेना टुकडी आ गई,युद्ध फ़िर से शुरू हो गया लेकिन दिन की समाप्ति तक कोई नतीजा नही निकला।
दुसरे दिन युद्ध से पहले रेमेसिस के सामने समझौते कि बात कि गई,वो इसके लिए तैयार नही था..उसे डर था की वो वापस जाकर मिस्रवासियों को क्या जवाब देगा.....रेमेसिस ने वापस आ कर अपने अधूरे समझौते की बात जाहिर नही की.उसने शर्म से बचने के लिए मंदिरों पर चित्र खुदवाए....जिसमे उसे अकेले ही केडास कि पूरी सेना से भिड़ते हुए दिखाया गया।मिस्र में अब पिरामिडों का चलन बंद हो गया...ख़ुद को पत्थरों में बनवा लेना ही अमरता कि निशानी बन गया था...रेमेसिस ने भी पहाड़ को तराश कर अपने स्मारक का निर्माण करवाया,जो उसके शासन के २४ साल बाद बन कर तैयार हुआ.ये बहुत ही शानदार मन्दिर है और अब्बू सिब्बल के नाम से जाना जाता है.....वैसे तो रेमेसिस ने बहुत से मंदिरों और स्मारकों का निर्माण करवाया था,लेकिन अब्बू सिब्बल बहुत ही प्रसिद्ध है...इसके भीतरी हिस्से में उसकी ३०-३० फीट लम्बी प्रतिमा है....मन्दिर के गर्भगृह में भी उसकी प्रतिमा २ भगवान् कि मूर्तियों के साथ मौजूद है...सूर्य कि किरणें साल में २ बार ही वहाँ पहुँचती है।
रेमेसिस के विशाल निर्माण कार्य का प्रमाण उसकी प्रतिमाओं कि अधिकता है.उसने सबसे ज्यादा प्रचार भी किया....युद्घ के तुंरत बाद वो प्रचार के लिए मंदिरों में नक्काशियां करवाता था.रेमेसिस के सभी पत्नियों से ४० बेटे-४० बेटियाँ थीं.उसने तीन पीढियों तक राज किया(करीब ६७ साल)....वह ९०-९१ साल की उम्र तक जीवित रहा.उसकी मृत्यु के कुछ समय बाद उसकी ममी एक साधारण से मकबरे में पाई गई,जहाँ मकबरे से कीमती चीजों को चुराने के बाद ममी को रख दिया जाता था.
मिस्र के इन स्मारकों और रेमेसिस के बारे में जानकर मिस्र के इतिहास की जटिलता को समझने का मौका मिला,इसे ज्यों का त्यों आपके सामने रख पाऊंगी......सोचा न था....
मिश्र नहीं-->मिस्र (Egypt)
ReplyDeleteरेमेसिस द्वितीय और उसके काल का बहुत ही सुन्दर चित्रण. आभार
ReplyDeleteकुछ नयी जानकारी भी मिली। सुन्दर आलेख।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
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shyamalsuman@gmail.com
रेमेसिस द्वितीय के बारे में बहुत ही विस्तारपूर्वक जानकारी प्रदान की आपने....आभार
ReplyDeleteKindly visit this blog:
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वाकई इतिहास बहुत रोचक होता है।
ReplyDeleteनमस्कार स्वीकार करें
aap sabhi ka bahut-bahut dhanywaad....misraji mainne apni galti sudhar li hai....galti batane ke liye dhanyawaad.....
ReplyDeleteachchhi jankari mili
ReplyDeleteinformative post.......badhai.....egypt jane aur pyramids dekhne ki badi tammana hai...na jane kab puri hogi..?
ReplyDeletejankari prastut karne ki kala main aap bilkul nipun hai , padne ke baad aisa laga. Bahut bahut dhanyawad, sadhuvad.
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