Saturday, May 16, 2009

युगंधर:रुक्मिणी की नज़र से

युगंधर में श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के विवाह के बाद की घटनाओं को रुक्मिणी के माध्यम से बताया है.जिस तरह से एक पत्नी को हमेशा अपने पति पर नाज़ होता है और अगर वो अपने पति के बारे में बात करे तो वह उनकी हर उपलब्धि से प्रभावित रहती है....इसी तरह से रुक्मिणी के भावों को प्रकट किया गया है.लेकिन उन्होंने कई ऐसी घटनाओं का भी जिक्र किया जो उनके सामने नही घटी.....इस बात से पाठकों को हैरानी न हो इसलिए रुक्मिणी ने बताया है की ये बातें उन्हें उद्धवजी से पता चली,जो श्रीकृष्ण के साथ हमेशा रहते थे.

इस भाग में रुक्मिणी के द्वारा 'शिवाजी' ने उनकी द्वारिका आने,प्रदुमन् के जन्म और अपहरण,सम्यन्तक मणि की चोरी,श्रीकृष्ण के अन्य विवाह और रुक्मिणी का श्रीकृष्ण की अन्य पत्नियों का प्रेमपूर्वक स्वागत,श्रीकृष्ण के वंश,द्रौपदी स्वयंवर,स्वयंवर में पांडवों को जीवित पाने पर श्रीकृष्ण की खुशी,श्रीकृष्ण का हस्तिनापुर जाकर पांडवों को न्याय दिलाने की कोशिश,खांडववन को इन्द्रप्रस्थ बनने की घटना,अर्जुन का द्वारिका आगमन,सुभद्रा का अर्जुन से लगाव,श्रीकृष्ण और उनके परिवार का इन्द्रप्रस्थ जाना,भीम का बलराम से मल्ल विद्या की शिक्षा लेना,अर्जुन का वनवास,बलराम का सुभद्रा का विवाह दुर्योधन से तय करना,श्रीकृष्ण द्वारा सुभद्रा को अर्जुन से हरण करवाना.....इन सभी घटनाओ का जिक्र करवाया है.

इसके अलावा और भी कई रोचक घटनाओं का भी जिक्र किया गया है,जैसे सुदामा का द्वारिका आगमन और श्रीकृष्ण का उनका स्वागत करना,लक्ष्मणा के स्वयंवर में श्रीकृष्ण का मुकुट में से मोरपंख उतारना.....जिसने सभी को आश्चर्य में डाल दिया,रुक्मिणी को भी....इसका कारण केवल उद्धवजी को पता था......

"स्वयंवर-मंडप में कोई भी समझ नही सका कि उस मोरपंख के कारण भैया जलकुंड में प्रतिबिंबित,गरगर घूमते मत्स्य के नेत्र को भेद नही पा रहे थे.जलकुंड में दोलायमान मत्स्य-बिम्ब के साथ-साथ चंद्रभागा को छूकर आती शीतल वायुलहरों के कारण भैया के मुकुट में लगे मोरपंख का जलकुंड में पड़ा प्रतिबिम्ब भी दोलित होकर मत्स्यभेद में बाधा डाल रहा था.वह भैया की एकाग्रता भंग कर रहा था.अतः भैया ने इसे उतारकर रखा."

श्रीकृष्ण की पत्नी के तौर पर रुक्मिणी की ओर से श्रीकृष्ण की जीवन की घटनाओं को इतनी सहजता से पेश करने की कला भी किसी लेखक में होगी......सोचा था....

1 comment:

  1. sundar sarthak charcha...pustak padhne ko man utkanthit ho gaya...kripaya pustak prapti hetu poorn vivran den to badi kripa hogee.

    ReplyDelete