खुफु...2600B.C.में मिश्र का एक महान शासक,जो की अपने लोगों के बीच भगवान की तरह पूजा जाता था.उसका अपनी जनता पर न सिर्फ़ पूरा नियंत्रण था बल्कि लोग उसपर भरोसा भी करते थे.....खुफु बीस साल से भी ज्यादा समय तक दुनिया का सबसे शक्तिशाली इंसान बना रहा,उसने अपने देश की समृद्धि के लिए कई कार्य किए.इसमे से ही एक कार्य था....गिजा के पिरामिड का निर्माण।
खुफु से पहले उसके पिता"स्नेफेरू"ने भी तीन पिरामिडों का निर्माण कराया था.....सीढीनुमा पिरामिड,सपाट पिरामिड;लेकिन इनमें कुछ त्रुटियाँ थीं जैसे कमजोर नीव,जिसके कारण ये बाद में तिरछे हो गए थे.खुफु इन गलतियों सुधारते हुए इनसे भी अच्छा पिरामिड बनाना चाहता था.....इसलिए उसने गिजा के पठार को चुना....यहाँ की पथरीली ज़मीन मजबूत बुनियाद और उत्तम गुणवत्ता वाले लाइम स्टोन की उपलब्धता के कारण चुनी गई।
इस पिरामिड निर्माण में बहुत पैसा लगने वाला था मिश्र नील नदी के द्वारा समृद्ध था,लेकिन ये तब भी संभव नही था.ये भी कहा जाता है कि इसलिए खुफु ने इसे गुलामों से बनवाया...लेकिन विभिन्न खोजों के द्वारा पता चल चुका है कि निर्माण कार्य मिस्रवासियों के द्वारा ही हुआ था.
इसके लिए खुफु ने नील नदी कि बाढ़ का उपयोग किया.बाढ़ के 3-4 महीनों में जब किसानों के पास रोजगार नही होता था,तब उन्हें निर्माणकार्य में लगा कर रोजगार प्रदान किया जाता था.इस निर्माण कार्य में करीब 1,00,000
व्यक्ति कार्य में लगे थे.पिरामिड से कुछ मील दूर शहर बसाया गया था,ताकि मजदूर निर्माण कार्य पूरा करने तक वहाँ रह सकें.....यहाँ उन्हें अस्पताल,स्कूल,जैसी सुविधाओं के साथ -साथ राजा द्वारा भोजन और महिलाओं के लिए रोजगार भी उपलब्ध कराया गया था.राजा जो ख़ुद खाते थे वही उन्हें देते थे.
इस पिरामिड को माट(सूर्य के देवता जिनके कारण सूर्य उदय और अस्त होता है,ऐसी मान्यता है)के नियमानुसार बनाया गया.उन्हें पूर्व और पश्चिमी दिवार पर बनाया जाता था और ध्रुव तारे से भी सम्बन्ध जोड़कर निर्माणकार्य किया गया.स्क्वायर लेवल के द्वारा पत्थरों को समतल रखा गया.पिरामिड को लाइम स्टोन से ढंककर प्लेन किया गया,जो कि सूर्य कि किरणें पड़ने से चांदी की तरह दिखती थी.निर्माण कार्य के लिए नील नदी के द्वारा ही सामान उपलब्ध कराया जाता था.भारी पत्थरों को निर्माण स्थल तक पहुँचने के लिए रैंप और लकडी के प्रयोग किया जाता था.इन बातों की पुष्टि मजदूरों के कंकालों की जांच से पता चलीं हैं,क्यूंकि उनके कंकाल में हड्डियां मुडी हुई और कमर झुकी हुई पाई गई,साथ ही मजदूरों और उनके परिवार की औसत आयु २२ वर्ष थी जबकि राजपरिवार की औसत आयु ५५ वर्ष।
खुफु की इच्छा थी,कि पिरामिड का निर्माण उसकी मृत्यु से पहले ही हो जाए...पिरामिड बनने में 20साल लगे,उसकी ऊंचाई तब 146.6 मी.थी,जो की तब तक बने पिरामिडों में सबसे ज्यादा थी.....पिरामिड निर्माण के कुछ दिनों के बाद खुफु की मृत्यु हो गई.खुफु के बाद भी कई पिरामिड बनाये गए,लेकिन फिर भी उसके द्वारा बनवाया गया गिजा का पिरामिड ,जिसे SUPHIS भी कहा जाता है और जिसकी ऊंचाई अब 137 मी.है,अब भी खुफु की कहानी बयान करता है।
विश्व के सात अजूबों में से एक मिश्र के पिरामिडों के निर्माण की कहानी इतनी रोचक होगी...सोचा ना था....
वाकई बहुत दिलचस्प किस्सा बताया आपने ...पढ़कर अच्छा लगा
ReplyDeleteमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
बहुत अच्छा वर्णन. एक दो चित्र भी लगा देते तो और मजा आ जाता. आभार
ReplyDeleteरोचक जानकारी!!
ReplyDeleteKahaani Badi Hi Dilchasp Hai...Maine Kuchh Images search karke rakhi hain...main aapse kal share karta hoon...aur kal unko yahaan par post bhi kar dijiyega...
ReplyDeleteनेहा, मुझे अच्छा लगा तुम्हारे भीतर के इतिहास बोध को जानकर.इसके लिये तुम्हारे बोरकर सर को धन्यवाद. मैने इतिहास पर 53 पेज की लम्बी कविता लिखी है पुरातत्ववेत्ता .उसकी यह पंक्तियाँ ...
ReplyDelete"रात का अंतिम पहर है यह/खामोशी मौत से बढकर भी कुछ और/अपनी धडकन से भी ज़्यादा साफ आवाज़ में/सुन रहे हैं पुरातत्ववेत्ता/उर की कब्र में ज़िन्दा दफ्न किये सेवकों की सिसकियाँ/गीज़ा के पठार में हवा के तेज़ झोकों से उडती है रेत/काली उदासी में सफेद सी चमकती है/बोझ से टूटे जिस्म मे कूल्हे की एक हड्डी/फिर नज़र आती है कोई कशेरुका/धीरे धीरे मज़दूर का टूटा हुआ हाथ निकल आता है."
सम्वाद बनाये रखना.
शरद कोकास
http://www.sharadkokas.blogspot.com
interesting article.
ReplyDeleteसोचा ना था..हमने भी आज आप ने जो दर्शाए,
ReplyDeleteएक अजूबे के तथ्यो से, हम भी अवगत हो पाए,
बहुत बधाई आपको पहुँचे,नयी बात हमने जाना,
रूचि कर बाते हमे बताए,बस ऐसे ही लिखते जाएँ.
... बहुत खूब, प्रभावशाली अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteaap sabhi ke amulya sujhawon aur tippaniyon ke liye dhanyawaad....alokji photo share karne ke liye dhanyawaad....sharadji aapki kavita bahut hi acchi hai main ise poori padhna chahungi.
ReplyDeleteSimply great source of information, at least for those stupid guys, like me, for whom history have become a history, just for the sake of current technology.
ReplyDeleteKeep writing.
choonki itihaas mera subject rahaa he, padhhna likhnaa aadat, to esi jaankaari mujhe bhaati he/ fir itihaas he yeh to, ateet ko jivant kar dene vala ek paksh//so aapke dvara di gai jaankaaree mastishk me sanjone ke liye he///
ReplyDeletedhnyavaad