Tuesday, April 7, 2015

क़िताबों की दुनिया



साल शुरू होते ही संकल्प लेने का सिलसिला शुरू हो जाता है,जो महीने- दो महीने में टूट भी जाता है,वैसे तो मैं संकल्प लेने की आदी नहीं हूँ;पर साल के शुरुवात में ही इस बार मैंने संकल्प लिया कि इस साल कम से कम २४ किताबें पढूंगी.पर जब हिंदुस्तान टाइम्स में देखा तो उन्होंने साल में कम से कम ३० किताबें पढने का चैलेंज रखा था. तो बस २4 किताबों के लक्ष्य को ३० किताबों पर लाने में संकल्प के शुरुवाती जोश ने मदद की और संकल्प ले लिया गया. अब बस शंका इस बात की थी कि संकल्प कहीं आम संकल्प की तरह टूट न जाए. तो बस इस संकल्प को पूरा करने के लिए जी-जान से जुट गयी,क्यूंकि ये संकल्प मैं टूटने नहीं देना चाहती थी और इसके पूरा होने से मेरा ही फायदा भी है;आखिर हर किताब आपको एक नयी दुनिया की सैर जो कराती है. अब जब अप्रैल की शुरुवात हो गयी है तो मैंने कल ही अपनी बारहवीं किताब पढ़कर पूरी की है और इस बात से मुझे ख़ुशी भी है कि अपने रोजमर्रा के कामों को छोड़े बग़ैर मैं आराम से इतना पढ़ पा रही हूँ,शायद ये वक़्त इस संकल्प के न होने से यूँ ही बेकार चला जाता.

वैसे साल के चौथे महिने में ये बात लिखने का कारण ये है कि मुझे लगा कि ब्लॉग की दुनिया से भी न जाने कितने दिनों से रिश्ता टुटा हुआ है.कभी कुछ लिखने का मन भी होता है तो उस वक़्त इतना समय नहीं होता या फिर साधन नहीं होता. पर अब मुझे लगता है जब हर नयी क़िताब के साथ मैं एक नयी दुनिया के सफ़र में जा रही हूँ तो अपने उन अनुभवों को क्यूँ न मैं यहाँ लिखूं और शायद उससे मेरा पढ़ा हुआ मेरे साथ रह जाएगा. और कहते हैं न कि आप पढ़ते या लिखते वक़्त उतना समझ नहीं पाते जितना किसी को वो बात बताते हुए या पढ़ाते  हुए समझ आती है. तो बस अब से हर क़िताब का सफ़र सिर्फ़ फेसबुक तक नहीं बल्कि ब्लॉग में भी जारी रहेगा.शायद ये ब्लॉग पोस्ट किसी और को भी पढने के लिए प्रेरित करे.आज मुझे इस बात का अहसास हो रहा है कि मैं भले ही अपनी हर पढ़ी पुस्तक के विषय में फेसबुक में लिखती रही हूँ लेकिन फिर भी कुछ अधुरा –सा ही लगता है और हमेशा एक कमी-सी खलती थी. वो कमी थी ब्लॉग जगत से दूरी,अब यहाँ खुलकर अपनी पूरी बात कही जायेगी,हर क़िताब की चर्चा होगी,हर अच्छे अंश शामिल होंगे और अब पढ़ने के साथ ही लिखने का अनकहा संकल्प भी पूरा करने की कोशिश होगी.

टूटे रिश्ते जुड़ने से मिलने वाली ख़ुशी बयां नहीं की जा सकती फिर चाहे वो क़िताबे और ब्लॉग ही क्यूँ न हो..क़िताबों की दुनिया में वापस जाते ही ब्लॉग की दुनिया में वापसी होगी..सोचा न था....  

2 comments:

  1. ब्लॉग में जरूरी है
    फेसबुक पर तो केवल आपके मित्रों तक ही पहुंचेगी आपकी बात
    प्रणाम

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    1. प्रणाम अन्तर सोहिल जी,बिलकुल सही कहा आपने..हौसला बढ़ाने के लिए धन्यवाद

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